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फ़ुर्सत के पल में पढें दुनिया में संतुष्टि का अभाव पीड़ादायक

अनूप नारायण सिंह 

   मिथिला हिन्दी न्यूज :-  सृष्टि में अमीर कौन है भिखारी कौन है इसको समझना पूरे ब्रम्हाण्ड को समझने जैसा है।आज के वक़्त में ना कोई राष्ट्र , ना कोई नेतृत्व ,ना कोई विश्वव्यापी व्यापारी, ना छोटा व्यापारी, ना समाज, ना परिवार और ना ही इंसान संतुष्ट है।सब को कुछ न कुछ और पाने की चाहत पीड़ा का कारण होता है।जिसको भगवान की दी हुई आशीर्वाद रूप में जीवन से जुड़ी सारी ज़रूरत से संतुष्टि नही है वह इंसान इस दुनिया में किसी सांसारी वस्तु से संतुष्ट नही हो सकता।किसी ने सही ही कहा है कि इस दुनिया में कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता, कहीं ज़मीन तो कहीं आसमान नहीं मिलता है।इस संसार में जो भी इन्सान जन्म लेता है वो अपने साथ कुछ भी नहीं लाता है और जब इस संसार को छोड़कर जाता है तभी वो अपने साथ कुछ भी नहीं लेकर जाता है।परन्तु इंश्वर ने इस तरह का खेल इंसान के जीवन के साथ रचा की जब तक वो जिन्दा रहेगा पूरे जीवन भर भागता ही रहेगा।जिसके कारण वो अपनी पूरी जिंदगी इस संसार में कभी भी संतुष्ट नहीं होता है।इस बात को समझाने के लिए एक छोटी सी कहानी का उदहारण देता हु।किसी दूर राज्य में एक राजा शासन करता था। राजा बड़ा ही परोपकारी स्वभाव का था, प्रजा का तो भला चाहता ही था। इसके साथ ही पड़ोसी राज्यों से भी उसके बड़े अच्छे सम्बन्ध थे। राजा किसी भी इंसान को दुःखी देखता तो उसका ह्रदय द्रवित हो जाता और वो अपनी पूरी श्रद्धा से जनता का भला करने की सोचता।एक दिन राजा का जन्मदिन था। उस दिन राजा सुबह सवेरे उठा तो बड़ा खुश था। राजा अपने सैनिकों के साथ वन में कुछ दूर घूमने निकल पड़ा। आज राजा ने खुद से वादा किया कि मैं आज किसी एक व्यक्ति को खुश और संतुष्ट जरूर करूँगा।यही सोचकर राजा सड़क से गुजर ही रहा था कि उसे एक भिखारी दिखाई दिया। राजा को भिखारी की दशा देखकर बड़ी दया आई। उसने भिखारी को अपने पास बुलाया और उसे एक सोने का सिक्का दिया। भिखारी सिक्का लेके बड़ा खुश हुआ, अभी आगे चला ही था कि वो सिक्का भिखारी के हाथ से छिटक कर नाली में गिर गया। भिखारी ने तुरंत नाली में हाथ डाला और सिक्का ढूंढने लगा।राजा को बड़ी दया आई कि ये बेचारा कितना गरीब है, राजा ने भिखारी को बुलाकर एक सोने का सिक्का और दे दिया। अब तो भिखारी की खुशी का ठिकाना नहीं था। उसने सिक्का लिया और जाकर फिर से नाली में हाथ डाल के खोया सिक्का ढूंढने लगा।राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ, उसने फिर भिखारी को बुलाया और उसे एक चांदी का सिक्का और दिया क्यूंकि राजा ने खुद से वादा किया था कि एक इंसान को खुश और संतुष्ट जरूर करेगा। लेकिन ये क्या ? चांदी का सिक्का लेकर भी उस भिखारी ने फिर से नाली में हाथ डाल दिया और खोया सिक्का ढूंढने लगा।राजा को बहुत बुरा लगा उसने फिर भिखारी को बुलाया और उसे एक और सोने का सिक्का दिया। राजा ने कहा – अब तो संतुष्ट हो जाओ। भिखारी बोला महाराज, मैं खुश और संतुष्ट तभी हो सकूँगा जब मुझे वो नाली में गिरा सोने का सिक्का मिल जायेगा।दोस्तों हम भी, आप भी , दुनिया का हर अमीर - ग़रीब भी उस भिखारी की ही तरह हैं और वो राजा हैं भगवान है । अब भगवान हमें कुछ भी देदे हम संतुष्ट हो ही नहीं सकते। ये मेरी या आपकी बात नहीं है बल्कि पूरी दुनिया में मानव जाति कभी संतुष्ट नहीं हुई है।संतुष्टि नही होने के कारण आज समाज परिवार में कई तरह की घटनाएँ घटित होती रहती है।हत्या , लूट सहित हर तरह की आपराधिक घटनाएँ नित्य दिन समाज में देखने सुनने को मिलती रहती है। कोई अपने परिवार से कोई अपने बच्चे से तो कोई अपने जीवनसाथी से संतुष्ट नही है।जो सबके पीड़ा का कारण है।सबको अधिक पैसा चाहिए, पैसा मिले तो अब कार चाहिए, कार मिले तो और महँगी कार चाहिए, दुनिया समाज में जो भी अच्छा दिखे उसको चाहिए। स्वर्ग की अनुभूति और आनंद चाहिए। सारी चीझे हर इंसान के अंदर संतुष्टि के रूप में है पर देखने की कोसिस नही करता है।जो इंसान के जीवन की पूरी यात्रा में यही क्रम चलता रहता है।भगवान ने हमें ये अनमोल शरीर दिया है लेकिन हम जिंदगी भर नाली वाला सोने का सिक्का ही ढूंढते रहते हैं। आप चाहे कितने भी अमीर हो जाओ, चाहे कितना भी धन कमा लो आप संतुष्ट नहीं हो सकते।इस संसार में ए सत्य है कि स्वयं इंसान स्वयं से संतुष्ट नही है।जो उसके तनाव , पीड़ा का मुख्य कारण है।आज हम सभी इंसान इस अनमोल पावन शरीर को पाकर भी हम संसार रूपी नाली से सिक्के ही ढूढ़ते रहते हैं।दोस्तों भगवान के दिए इस शरीर रूपी धन का इस्तेमाल दूसरों की मदद के लिए करें और संतुष्टि को तलाशे तो निश्चित आनंद रूप में संतुष्टि मन के अंदर दृष्टिगोचर होगी।संतुष्टि स्थायी नहीं होती यह अस्थायी व समयानुसार इंसान के जीवन सफ़र में सुख-दुःख, हर्ष आते जाते रहता है।इंसान हर पल को अपने सोच को संतुष्टि के रूप में ढाल ले तो पीड़ा की अनुभूति नही होगी।इंसान तुमको इस दुनिया में अगर सब कुछ मिल जाएगा ज़िंदगी मे तो तमन्ना किसकी करोगे। जीवन में कुछ अधूरी ख्वाइशें तो ज़िन्दगी जीने का मज़ा देती है।आज कोरोना महामारी के कारण विश्व, राष्ट्र, समाज में आर्थिक मंदी उत्पन हो जाने से भुखमरी एवं भीखक्षाटण के राह पर समाज के ग़रीब , मज़दूर चल पड़े है।यदि समाज के सक्षम इंसान सहयोग ,सहायता के लिए आगे बढ़े तो स्वयं के संतुष्टि , आनंद की अनुभूति होगी।आज के वक्त में भूखा सो रहा है अपने घर में । भूख क्या होती है उनसे बेहतर कौन जान सकता है। हम सभी से निवेदन करता हु कि गरीबो का दर्द समझिए और निःस्वार्थ सेवा कीजिए ताकी जीवन में आपको संतुष्टि मिले। सेवा करने से कोई छोटा नहीं होता।अतीत के पन्ने पलटेंगे तो देखेंगे कि अपना समाज यही सिखलाया गया है।सेवा करो फल भगवन देगा । इंसान हम तुम दरिया हैं, अपना हुनर मालूम है।संतुष्टि के साथ जिस तरफ भी चल पड़ेंगे, रास्ता हो जाएगा जो सुखी जीवन के मंज़िल पर पहुँचाएगा।जीवन यात्रा में खुद से प्यार करना संतुष्टि, खुशी का पहला रहस्य है।इस रहस्य को हमेशा अपने अंदर जीवंत रखना है।हर इंसान अपने जीवन को एक मास्टरपीस बनाए।अपने अंदर विश्वास पैदा करे कि मैं इस ग्रह  पर अब तक का सबसे बड़ा व्यक्ति हूँ।अंत में कहूँगा :- चमक सूरज की नहीं इस दुनिया में हर इंसान किरदार की है, खबर ये आसमाँ के अखबार की है,तू चले तो तेरे संग कारवाँ चले, बात गुरूर की नहीं, तेरे अंदर संतुष्टि रूपी मौजूद ऐतबार की है।
लेखक मृत्युंजय कुमार सिंह बिहार पुलिस एसोसिएशन के अध्यक्ष है
        
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