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पितृऋण चुकाने के लिए श्रद्धापूर्वक ‘श्राद्धकर्म’ कर पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करें


श्री. चेतन राजहंस (प्रवक्ता, सनातन संस्था) 

 
मिथिला हिन्दी न्यूज :- धर्म कहता है कि देवऋण,ऋषिऋण, समाजऋण एवं पितृऋण चुकाना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है । पितृपक्ष में ‘पितृऋण’ चुकाने के लिए श्राद्धकर्म करना आवश्यक होता है; परंतु वर्तमान में अनेक हिन्दुआें में धर्मशिक्षा का अभाव, तथाकथित बुद्धिजीवियों का अपप्रचार एवं हिन्दू धर्म को हीन समझने की प्रवृत्ति के कारण श्राद्धकर्म की उपेक्षा करने की मात्रा बढती जा रही है । ‘राजा भगीरथ’ द्वारा पूर्वजों की मुक्ति के लिए की गई कठोर तपश्‍चर्या, तथा त्रेतायुग में प्रभु रामचंद्र के काल से लेकर छत्रपति शिवाजी महाराज के काल में भी श्राद्धकर्म किए जाने का उल्लेख है । आज भी अनेक पश्‍चिमी देशों के हजारों लोग भारत के तीर्थक्षेत्रों में आकर उनके पूर्वजों को आगे की गति प्राप्त हो, इसलिए श्रद्धापूर्वक श्राद्धकर्म करते हैं । हिन्दू भी तथाकथित आधुनिकतावादियों के किसी भी दुष्प्रचार से भ्रमित न होकर कोरोना महामारी के काल में भी शासन के सर्व नियमों का पालन कर अपनी क्षमतानुसार पितृऋण चुकाने के लिए श्रद्धापूर्वक ‘श्राद्धकर्म’ करें और अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करें, ऐसा आवाहन सनातन संस्था के धर्मप्रसारक सद्गुरु नंदकुमार जाधवजी ने किया । वे गणेशोत्सव उपरांत प्रांरभ होनेवाले पितृपक्ष के निमित्त ‘पितृपक्ष में श्राद्ध महिमा, अध्यात्मशास्त्र एवं शंकासमाधान’ विषय पर विशेष ‘ऑनलाइन’ कार्यक्रम में बोल रहे थे । हिन्दू जनजागृति समिति के श्री. प्रशांत जुवेकर ने इस कार्यक्रम का सूत्रसंचालन किया । *यह कार्यक्रम फेसबुक एवं यूट्यूब के माध्यम से 15275 लोगों ने प्रत्यक्ष देखा, तथा 22300 लोगों तक यह कार्यक्रम पहुंचा ।*

 इस कार्यक्रम में जिज्ञासुआें का मार्गदर्शन करते हुए सद्गुरु जाधवजी ने आगे कहा कि जिन्हें संभव है वे पुरोहितों को बुलाकर श्राद्धकर्म करें; परंतु जहां कोरोना के कारण पुरोहित अथवा श्राद्ध सामग्री के अभाववश श्राद्ध करना संभव नहीं है, वे आपद्धर्म के रूप में संकल्पपूर्वक ‘आमश्राद्ध’, ‘हिरण्यश्राद्ध’ अथवा ‘गोग्रास अर्पण’ कर सकते हैं । आमश्राद्ध में अपनी क्षमतानुसार अनाज, चावल, तेल, घी, शक्कर, आलू, नारियल, 1 सुपारी, 2 पान के पत्ते, 1 सिक्का इत्यादि सामग्री ताम्रपात्र में रखें । ‘आमान्नस्थित श्री महाविष्णवे नमः’ नाममंत्र का उच्चारण कर उसपर चंदन, अक्षत, फूल एवं तुलसीपत्र एकत्रित चढाएं । वह सामग्री पुरोहित, वेदपाठशाला, गोशाला अथवा देवस्थान को दान करें । यह संभव न हो तो हिरण्यश्राद्ध के अनुसार अपनी क्षमता के अनुरूप व्यावहारिक द्रव्य (पैसे) एक ताम्रपात्र में रखें । ‘हिरण्यस्थित श्री महाविष्णवे नमः’ कहकर वह अर्पण करें । जिनके लिए इन दोनों में से एक भी श्राद्ध करना संभव नहीं, वे गोग्रास दें अथवा गोशाला से संपर्क कर गोग्रास हेतु कुछ पैसे अर्पण करें । आमश्राद्ध, हिरण्यश्राद्ध अथवा गोग्रास समर्पण के उपरांत तिल तर्पण करें । जिनके लिए उपरोक्त में से कुछ भी करना संभव नहीं है, वे धर्मकार्य हेतु समर्पित किसी आध्यात्मिक संस्था को अर्पण करें । साथ ही, अतृप्त पूर्वजों के कष्टों से रक्षा होने हेतु पितृपक्ष में ही नहीं, अपितु नियमित रूप से कम से कम 1 से 2 घंटे ‘श्री गुरुदेव दत्त’ नामजप करें । 

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