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तीन पीढ़ियां बर्बाद हो गई वित्त रहित शिक्षकों की,बूढ़े मां बाप की दवाई और बेटी की विदाई नहीं हो सकी वित्त रहित शिक्षकों की

बकाया अनुदान नहीं मिलने से वित्तरहित शिक्षकों के घरों में हाहाकार !
 

मोरवा/संवाददाता।

मोरवा प्रखंड के वित्त रहित शिक्षकों सहित जिला एवं प्रदेश के सभी वित्त रहित शिक्षकों के परिवार में पिछले आठ वर्षों से बकाया अनुदान नहीं मिलने से हाहाकर मचा हुआ है।मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी द्वारा, वर्ष दो हजार आठ में वित्त रहित शिक्षा नीति की समाप्ति की घोषणा करते हुए परीक्षा फल के आधार पर अनुदान देने की घोषणा की थी। मुश्किल से दो बार अनुदान दिया गया। इसके बाद विभागीय पदाधिकारियों द्वारा विभिन्न तरह के बहाने बनाते हुए आठ साल गुजार दिए गए। लेकिन डिग्री एवं इन्टर महाविद्यालय के वित्त रहित शिक्षकों को आठ साल से अनुदान नहीं मिलने के कारण परिजनों में भुखमरी का संकट छा गया है। दूकानदारों ने अब उधार देना भी बंद कर दिया है। ना तो बूढ़े मां बाप और बीमार परिजनों को दवाई उपलब्ध हो पा रही है। ना तो पैसों के अभाव में युवा हो चुकी की बेटियों का विवाह हो रहा है। या लड़के माता-पिता ने बड़े लाड प्यार से पाल पोस कर माता-पिता ने बरेलाल प्यार से पाल पोस कर जमीन जायदाद एवं गहने जेवर बेचकर अपने बेटों को वित्त रहित महाविद्यालयों में प्रोफेसर बनाया था। लेकिन सन 1981 में बिहार सरकार द्वारा वित्त रहित शिक्षा नीति का काला कानून लगाकर,जीवन के सारे अरमानों को जलाकर राख कर दिया गया। पटना के बेली रोड चौराहे पर सैकड़ों बार आन्दोलन हुए। सन्19 सौ 90 के आंदोलन में दर्जनों शिक्षक बाल बच्चे सहित पटना के बेली रोड चौराहे पर दम तोड़ दिये। जॉर्ज फर्नांडिस से लेकर सुशील कुमार मोदी तक सांत्वना और दिलासा देने आए लेकिन बिहार सरकार के कानौ पर जूं तक नहीं रेंग सका। वर्ष 2008 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की घोषणा से वित्त रहित शिक्षकों में डूबते को तिनके का सहारा मिलने की आशा जगी। लेकिन विभिन्न प्रकार के वाहनों के कारण वह आशा भी राज्य सरकार की लापरवाही के कारण धूमिल होती नजर आ रही है। वित्त रहित गरीब शिक्षकों के बूढ़े मां बाप दवाई के बिना बेमौत मर गए। गरीब वित्त रहित शिक्षकों की हजारों बेटियां पैसे के अभाव में कुंवारी रह गई। अर्थ आभाव के कारण वित्त रहित शिक्षकों के बाल बच्चे अच्छी पढ़ाई से वंचित रह गए।पैसे के घोर अभाव एवं दाने-दाने को मोहताज वित्त रहित शिक्षकों की तीन पीढ़ियां वित्त रहित शिक्षा नीति के कारण बर्बाद हो गई है। केंद्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा कोरोना के समय में आम लोगों को उनके खातों पर कुछ राशि भेजी गई। लेकिन वित्त रहित शिक्षकों को वह भी नसीब नहीं हो सका। अब दाने-दाने को मोहताज हो चुके वित्त रहित शिक्षकों के हर महीने कोई न कोई परिजन, किसी न किसी बीमारी से, अकाल काल के गाल में समाते चले जा रहे हैं।पैसे के अभाव में वित्त रहित शिक्षक अपने परिजनों को अपनी आंखों के सामने में मरते हुए देखते हुए किंकर्तव्यविमूढ़ रह जाते हैं। सैकड़ों वित्त रहित शिक्षक पैसे के अभाव में स्वयं मर चुके हैं। लेकिन राज्य सरकार की नींद नहीं खुल रही है।पिछले साल होली से पूर्व राज्य सरकार द्वारा बकाया अनुदान देने की घोषणा की गई थी। लेकिन अब तक किसी भी पर्व त्यौहार में वित्त रहित शिक्षकों को बकाये राशि की प्राप्ति नसीब नहीं हो सकी। हर पर्व त्यौहार के आते ही वित्त रहित शिक्षकों के परिवार में हाहाकार मच जाता है। चौठ चांद के अवसर पर सारे बिहार के लोग पर्व मनाए। लेकिन वित्त रहित शिक्षकों के परिजनों को दूध और चीनी खरीदने के लिए भी पैसे नहीं थै। मोहर्रम का त्यौहार शूरु हो गया है। लेकिन दाने-दाने को मोहताज वित्त रहित शिक्षकों के परिजनों में सालों भर मोहर्रम छाया हुआ रहता है।
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