अपराध के खबरें

स्वतंत्रता दिवस पर भी उपेक्षा का शिकार हुए स्वतंत्रता दिलाने वाले

किस्मत पर आठ आठ आंसू रोने को विवश होगी, शहीद की आत्मा



अगस्त क्रांति के दौरान अंग्रेजों के गोलियों से शहीद हुए थे उमाकांत चौधरी



राकेश यादव:-

बछवाड़ा/ संवाददाता:- युं तो समूचे भारत में लॉकडाउन के बीच सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थानों पर स्वतंत्रता दिवस का राष्ट्रीय पर्व मनाया गया। मगर बछवाड़ा उस वीर सपूत स्वतंत्रता सेनानी की आत्मा आठ-आठ आंसू रोने की विवश होगी। जिन्होंने इस स्वतंत्रता को दिलाने के लिए अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। जी हां हम बात कर रहे हैं बछवाड़ा गांव निवासी वीर सपूत शहीद उमाकांत चौधरी की, जिन्होंने अगस्त क्रांति के दौरान 17 अगस्त 1942 अंग्रेजों के गोलियों का शिकार होकर शहीद हुए थे। पुराने बुढ़े-बुजुर्गों का कहना है कि स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान देश के युवाओं में आंदोलन के प्रति सक्रिय जागृति फैलाने हेतु राष्ट्रपिता महात्मा गांधी बछवाड़ा आए थे। तब बापू को यहां के स्थानीय सेनानियों नें नारेपुर पश्चिम स्थित जट्टा बाबा ठाकुरबाड़ी में ठहराया था। वीर सेनानी उमाकांत चौधरी, रायबहादुर शर्मा, मिट्ठन चौधरी आदि आसपास के गांवों में घुम घुमकर युवाओं की टोली को इकट्ठा किया करते थे। तत्पश्चात युवाओं की टोली को बापू महात्मा गांधी स्वयं आंदोलन के प्रति प्रेरित कर नयी जान फुंकने का काम किया। अगस्त क्रांति के बारे में ऐसा कहा जाता है कि भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए तमाम छोटे-बड़े आंदोलन किए गए। अंग्रेजी सत्ता को भारत की जमीन से उखाड़ फेंकने के लिए गांधी जी के नेतृत्व में जो अंतिम लड़ाई लड़ी गई थी उसे 'अगस्त क्रांति' के नाम से जाना गया है। इस लड़ाई में गांधी जी ने 'करो या मरो' का नारा देकर अंग्रेजों को देश से भगाने के लिए पूरे भारत के युवाओं का आह्वान किया था। यही वजह है कि इसे 'भारत छोड़ो आंदोलन' या क्विट इंडिया मूवमेंट भी कहते हैं। इस आंदोलन की शुरुआत 9 अगस्त 1942 को हुई थी, इसलिए इसे अगस्त क्रांति भी कहते हैं।

इस आंदोलन की शुरुआत मुंबई के एक पार्क से हुई थी जिसे अगस्त क्रांति मैदान नाम दिया गया। आजादी के इस आखिरी आंदोलन को छेड़ने की भी खास वजह थी। दरअसल जब द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ तो अंग्रेजों ने भारत से उसका समर्थन मांगा था, जिसके बदले में भारत की आजादी का वादा भी किया था।

भारत से समर्थन लेने के बाद भी जब अंग्रेजों ने भारत को स्वतंत्र करने का अपना वादा नहीं निभाया तो महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ अंतिम युद्ध का एलान कर दिया। इस एलान से ब्रिटिश सरकार में दहशत का माहौल बन गया। इसी अगस्त क्रांति के दौरान अंग्रेजी शासकों के संचार प्रणाली को ध्वसत करने के उद्देश्य से युवाओं की एक टोली रेलवे लाइन व टेलीफोन के तार को बछवाडा़ में छतिग्रस्त किया जा रहा था। तभी मौका-ए-वारदात अंग्रेजी सिपाहियों नें वहां पहुंचकर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी थी। इस दौरान शहीद उमाकांत चौधरी के अध्यक्ष सहयोगी तो भागने में सफल रहे, मगर उमाकांत चौधरी अंग्रेजों के गोलियों का शिकार होकर शहीद हो गए। 

वर्तमान पीढ़ी के युवाओं को पुछने पर वह सीधे तौर पर कहते हैं कि कौन उमाकांत नहीं मालूम। शहीद के मिटते महत्त्व, नाम व पहचान का जिम्मेवार आखिर कौन है यह सवाल मुंह बाए खड़ी है। प्रशासनिक स्तर से प्रखंड मुख्यालय अथवा अन्य किसी जगहों पर स्थानीय स्वतंत्रता सेनानियों व शहीदों का कोई सुची व स्मारक तक मयस्सर नहीं है। हालांकि शहीद उमाकांत चौधरी को याद रखने के स्मारक बनाने का प्रयास किया गया था। जो दुर से देखने पर महज़ एक गहबर जैसा प्रतीत होता है। उक्त गहबर अगर तिरंगे से नहीं रंगा गया होता तो, वहां से गुजरने वाले राहगीर शौचालय समझ बैठते। शहीद की उपेक्षा का आलम यह है कि 

राष्ट्रीय पर्व 26 जनवरी हो या 15 अगस्त , उक्त शहीद का जन्म दिवस हो अथवा शहादत दिवस किसी भी अवसर पर यहां कोई चहलकदमी तक नहीं होती। सरकारी स्तर पर चलाएं जा रही योजना-परियोजना भी इस शहीद व उनके स्मारक के लिए कोई मायने नहीं रखती।
Tags

إرسال تعليق

0 تعليقات
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

live