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अधिक अथवा ‘पुरुषोत्तम मास’ का महत्त्व, इस अवधि में किए जानेवाले व्रत, पुण्यकारक कृत्य और इन्हें करने का अध्यात्मशास्त्र !


 मिथिला हिन्दी न्यूज :-‘इस वर्ष १८.९.२०२० से १६.१०.२०२० की अवधि में अधिक मास है । यह अधिक मास ‘आाश्विन अधिक मास’ है । अधिक मास को अगले मास का नाम दिया जाता है, उदा. आाश्वन मास से पूर्व आनेवाले अधिक मास को ‘आाश्विन अधिक मास’ कहते हैं और उसके उपरांत आनेवाले मास को ‘शुद्ध आाश्विन मास’ कहा जाता है । अधिक मास किसी बडे पर्व की भांति होता है । इसलिए इस मास में धार्मिक कृत्य किए जाते हैं और ‘अधिक मास महिमा’ग्रंथ का वाचन किया जाता है ।

१. अधिक मास क्या होता है ?

१ अ. चांद्रमास : सूर्य एवं चंद्र का एक बार मिलाप होने के समय से लेकर अर्थात एक अमावस्या से लेकर पुनः इस प्रकार मिलाप होने तक अर्थात अगले मास की अमावस्या तक का समय ‘चांद्रमास’ होता है । त्योहार, उत्सव, व्रत, उपासना, हवन, शांति, विवाह आदि हिन्दू धर्मशास्त्र के सभी कृत्य चांद्रमास के अनुसार (चंद्रमा की गति पर) सुनिाश्चित होते हैं । चांद्रमासों के नाम उस मास में आनेवाली पूर्णिमा के नक्षत्रों के आधार पर पडे हैं, उदा. चैत्र मास की पूर्णिमा के दिन चित्रा नक्षत्र होता है ।

१ आ. सौरवर्ष : ऋतु सौरमास के अनुसार (सूर्य की गति पर) सुनिश्चित हुए हैं । सूर्य आश्विनी नक्षत्र से लेकर भ्रमण करते हुए पुनः उसी स्थान पर आता है । उतने समय को ‘सौरवर्ष’ कहा जाता है ।

१ इ. ‘चांद्रवर्ष और सौरवर्ष का मेल हो’; इसके लिए अधिक मास का प्रयोजन ! : चांद्रवर्ष के ३५४ दिन और सौरवर्ष के ३६५ दिन होते हैं, अर्थात इन २ वर्षों में ११ दिनों का अंतर होता है ।‘इस अंतर की भरपाई हो’, साथ ही चांद्रवर्ष और सौरवर्ष का मेल हो; इसके लिए स्थूल लगभग ३२. ५ (साढे बत्तीस) मास के पश्चात एक अधिक मास लिया जाता है अर्थात २७ से ३५ मास के पश्चात १ अधिक मास आता है ।

२. अधिक मास के अन्य नाम : अधिक मास को ‘मलमास’ कहते हैं । अधिकमास में मंगल कार्य की अपेक्षा विशेष व्रत और पुण्यकारी कृत्य किए जाते हैं; इसलिए इसे ‘पुरुषोत्तम मास’ भी कहते हैं ।

३. अधिक मास किस मास में आता है ?

अ. चैत्र से आाश्विन इन ७ मासों में से एक मास ‘अधिकमास’ के रूप में आता है ।

आ. कभी-कभी फाल्गुन मास भी ‘अधिक मास’ केरूप में आता है ।

इ. कार्तिक, मार्गशीर्ष और पौष, इन मासों से जोडकर अधिक मास नहीं आता । इन ३ मासों में से कोई भी एक मास क्षय मास हो सकता है; क्योंकि इन ३ मासों में सूर्य की गति अधिक होने के कारण एक चांद्रमास में उसके २ संक्रमण हो सकते हैं । जब क्षय मास आता है, तब एक वर्ष में क्षय मास से पूर्व १ और उसके उपरांत २ ऐसे अधिक मास निकट-निकट आते हैं ।

ई. माघ मास अधिक अथवा क्षय मास नहीं हो सकता ।

४. अधिक मास में व्रत और पुण्यकारी कृत्य करनेका अध्यात्मशास्त्र : प्रत्येक मास में सूर्य एक-एक राशि में संक्रमण करता है; परंतु अधिक मास में सूर्य किसी भी राशि में संक्रमण नहीं करता अर्थात अधिक मास में सूर्य संक्रांति नहीं होती । इस कारण चंद्र और सूर्य की गति में अंतर पडता है और वातावरण में भी ग्रहणकाल की भांति बदलाव आते हैं । ‘इस बदलते अनिष्ट वातावरण का अपने स्वास्थ्य पर परिणाम नहो; इसलिए इस मास में व्रत और पुण्यकारी कृत्य करने चाहिए’, ऐसा शास्त्रकारों ने बताया है ।

५. अधिक मास में किए जानेवाले व्रत तथा पुण्यकारी कृत्य

अ. अधिक मास में श्री पुरुषोत्तम प्रीत्यर्थ १ मास उपवास, आयाचित भोजन (अकस्मात किसी के घर भोजन के लिए जाना), नक्त भोजन (दिन में भोजन न कर रात के पहले प्रहर में एक बार ही भोजन करना) भोजन करना चाहिए अथवा एकभुक्त रहना चाहिए । (दिन में एक बार ही भोजन करना) दुर्बल व्यक्ति, इन ४ प्रकारों में से न्यूनतम एक प्रकार का न्यूनतम ३ दिन अथवा एक दिन तो आचरण करे ।

आ. प्रतिदिन एक ही बार भोजन करना चाहिए । भोजन करते समय बोलना नहीं चाहिए, उससे आत्मबल बढता है। मौन रहकर भोजन करने से पापक्षालन होता है ।

इ. तीर्थस्नान करना चाहिए । न्यूनतम एक दिन गंगास्नान करने से सभी पापों की निवृत्ति हो जाती है ।

ई. ‘इस पूरे मास में दान देना संभव न हो, तो उसे शुक्ल एवं कृष्ण द्वादशी, पूर्णिमा, कृष्ण अष्टमी,नवमी, चतुर्दशी, अमावस्या, इन तिथियों को तथा व्यतिपात और वैधृति, इन योगों के दिन विशेष दानधर्म करना चाहिए’, ऐसा शास्त्र में बताया गया है ।

उ. इस मास में प्रतिदिन श्री पुरुषोत्तम कृष्ण की पूजा और नामजप कर अखंड आंतरिक सान्निध्य में रहने का प्रयास करना चाहिए ।

ऊ. दीपदान करना चाहिए । भगवान के सामने अखंड दीप जलाने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है ।

ए. तीर्थयात्रा और देवतादर्शन करने चाहिए ।

ऐ. तांबूल दान करना चाहिए । एक मास तांबूल दान करनेसे सौभाग्य की प्राप्ति होती है ।

ओ. गोपूजन कर गोग्रास देना चाहिए ।

औ. अपूपदान (अनरसों का) दान देना चाहिए ।

६. अधिक मास में कौन से कार्य करने चाहिए ? : इस मास में नित्य एवं नैमित्तिक कर्म करने चाहिए अर्थात जिन कर्मों को किए बिना कोई विकल्प नहीं है, ऐसे कर्म करने चाहिए । अधिकमास में निरंतर नामस्मरण करने से श्री पुरुषोत्तमकृष्ण प्रसन्न होते हैं ।

अ. ज्वरशांति, पर्जन्योष्टि आदि सामान्य कर्म करने चाहिए ।

आ. इस मास में देवता की पुनः प्रतिष्ठा की जा सकती है ।

इ. ग्रहणश्राद्ध, जातकर्म, नामकर्म, अन्नप्राशन आदि संस्कार करें ।

ई. मन्वादि एवं युगादि से संबंधित श्राद्धादि कृत्य करने चाहिए, साथ ही तीर्थश्राद्ध, दर्शश्राद्ध और नित्यश्राद्ध करने चाहिए ।

७. अधिक मास में कौन से कार्य नहीं करने चाहिए ? : सामान्य काम्य कर्मों को छोडकर अन्य काम्यकर्मों का आरंभ और समाप्ति नहीं करनी चाहिए । महादान (बहुत बडे दान), अपूर्व देवतादर्शन (पहले कभी नहीं गए ऐसे स्थान पर देवता के दर्शन के लिए जाना), गृहारंभ, वास्तुशांति, संन्यासग्रहण, नूतनव्रत ग्रहणदीक्षा, विवाह, उपनयन, चौल, देवता-प्रतिष्ठा आदि कृत्य नहीं करने चाहिए ।

८. अधिक मास में जन्मदिवस हो, तो क्या करना चाहिए ? : किसी व्यक्ति का जन्म जिस मास में हुआ है, वही मास यदि अधिकमास के रूप में आता है, तो उस व्यक्ति का जन्मदिवस शुद्ध मास में मनाएं, उदा. वर्ष २०१९ के आश्विन मास में जन्मे बालक का जन्मदिवस इस वर्ष का अधिक मास आश्विन होने के कारण उसे अधिक मास में न मनाकर शुद्ध आश्विन मास में मनाएं ।
इस वर्ष अधिक आश्विन मास में जिस बालक का जन्म होगा, उस बालक का जन्मदिन प्रतिवर्ष आश्विन मास की उस तिथि पर मनाएं ।

९. अधिक मास होने पर श्राद्ध कब करना चाहिए ?: ‘जिस मास में व्यक्ति का निधन हुआ हो, उसका वर्षश्राद्ध उसी मास के अधिक मास में आता हो, तब उस अधिक मास में ही उसका श्राद्ध करें, उदा. वर्ष २०१९ के आश्विन मास में व्यक्ति का निधन हुआ हो, तो उस व्यक्ति का वर्ष श्राद्ध इस वर्ष के अधिक आश्विन मास में उस तिथि को करें ।

अ. शक १९४१ के (अर्थात पिछले वर्ष के) आश्विन मास में किसी की मृत्यु हुई हो, तो उसका प्रथम वर्षश्राद्ध शक १९४२ के (इस वर्ष के) अधिक आश्विन मास में उस तिथि को करें ।

आ. प्रतिवर्ष के आश्विन मास का प्रतिसांवत्सरिक श्राद्ध इस वर्ष के शुद्ध आश्विन मास में करें; परंतु पहले के अधिक आश्विन मास में मृत्यु हुए व्यक्तियों का प्रति सांवत्सरिक श्राद्ध इस वर्ष के अधिक आश्विन मास में करें ।

इ. पिछले वर्ष (शक १९४१ में) कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष इत्यादि महीनों में मृतलोगों का प्रथम वर्षश्राद्ध संबंधित मास की उनकी तिथि पर करें । १३ मास होते हैं; इसलिए १ मास पहले न करें ।

ई. इस वर्ष अधिक आश्विन अथवा शुद्ध आश्विन मास में मृत्यु होने पर उनका प्रथम वर्षश्राद्ध अगले वर्ष के आश्विन मास में उस तिथि पर करें । 

(संदर्भ : धर्मसिंधु - मलमास निर्णय,वर्ज्य-अवर्ज्य कर्म विभाग)’ (संदर्भ : दाते पंचांग)

१०. अधिक मास निकालने की पद्धति

अ. जिस मास की कृष्ण पंचमी के दिन सूर्य की संक्रांति आएगी, अगले वर्ष प्रायः वही अधिक मास होता है; परंतु यह स्थूल रूप में (सर्वसामान्य) है ।

आ. शालिवाहन शक को १२ से गुणा करें और उस गुणांकको १९ से भाग दें । जो शेष रहेगा, वह संख्या ९ अथवा उससे न्यून हो, तो उस वर्ष अधिक मास आएगा,यह जान लें ।

 इ. एक और पद्धति (अधिक विश्वसनीय) : विक्रमसंवत् की संख्या में २४ मिलाकर उस जोड को १६० से भाग दें ।

१. शेष ३०, ४९, ६८, ८७, १०६, १२५, इनमें से कोई शेष रही, तो चैत्र
२. शेष ११, ७६, ९५, ११४, १३३, १५२, इनमें से कोई शेषरही, तो वैशाख
३. शेष ०, ८, १९, २७, ३८, ४६, ५७, ६५, ८४, १०३, १२२, १४१, १४९ इनमें से कोई शेष रही तो ज्येष्ठ
४. शेष १६, ३५, ५४, ७३, ९२, १११, १३०, १५७, इनमें से कोई शेष रही, तो आषाढ
५. शेष ५, २४, ४६, ६२, ७०, ८१, ८२, ८९, १००, १०८, ११९, १२७, १३८, १४६,इनमें से कोई शेष रही, तो श्रावण
६. शेष १३, ३२, ५१ में से कोई शेष रही, तो भाद्रपद तथा
७. शेष २, २१, ४०, ५९, ७८, ९७, १३५, १४३, १४५ में से कोई शेष रही, तो आश्विन मास अधिक मास होता है ।
८. अन्य कोई संख्या शेष रही, तो अधिक मासनहीं आता ।
उदा. इस वर्ष विक्रम संवत् २०७७ चल रहा है; इसलिए २०७७+२४ = २१०१
२१०१ को १६० से भाग देने पर शेष २१ रह जाता है; इसलिए शेष २१ आने से आश्विन मास अधिक मास है ।

*११.आनेवाले अधिक मासों की सारणी*

  *शालिवाहन शक* *अधिक मास*  

      1942 आश्विन
      1945 श्रावण
      1948 ज्येष्ठ  
      1951 चैत्र  
      1953 भाद्रपद
      1956 आषाढ 
      1959 ज्येष्ठ
      1961 आश्विन  

संकलनकर्ता : श्रीमती प्राजक्ता जोशी (ज्योतिष फलित विशारद एवं अंकशास्त्र विशारद), महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, ज्योतिष विभाग प्रमुख, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (18.07.2020)
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