नवरात्रि व्रत का अधिकाधिक लाभ प्राप्त होने के लिए शास्त्र वकस्त्र में बताए आचारों का पालन करना आवश्यक होता है । परंतु देश-काल-परिस्थितिनुसार सभी आचारों का पालन करना संभव नहीं होता । इसीलिए जो संभव हो, उन आचारों का पालन अवश्य करें । जैसे :
1. जूते-चप्पलों का उपयोग न करना
2. अनावश्यक न बोलना
3. धूम्रपान न करना
4. पलंग एवं बिस्तरपर न सोना
5. दिन के समय न सोना
6. दाढी और मूछ के तथा सिर के बाल न काटना
7. कठोरता से ब्रह्मचर्य का पालन करना
8. गांव की सीमा को न लांघना इत्यादि
नवरात्रि में मांसाहार सेवन और मद्यपान भी नही करना चाहिए । साथ ही रज-तम गुण बढानेवाला आचरण, जैसे चित्रपट देखना, चित्रपट संगीत सुनना इत्यादि त्यागना चाहिए ।
नवरात्रि की कालावधि में उपवास करने का महत्त्व
नवरात्रि के नौ दिनों में अधिकांश उपासक उपवास करते हैं । नौ दिन उपवास करना संभव न हो, तो प्रथम दिन एवं अष्टमी के दिन उपवास अवश्य करते हैं । उपवास करने से व्यक्ति के देह में रज-तम की मात्रा घटती है और देह की सात्त्विकता में वृद्धि होती है । ऐसा सात्त्विक देह वातावरण में कार्यरत शक्तितत्त्व को अधिक मात्रा में ग्रहण करने के लिए सक्षम बनता है ।
देवी उपासना के अन्य अंगों के साथ नवरात्रि की कालावधि में `श्री दुर्गादेव्यै नम: ।’ यह नामजप अधिकाधिक करने से देवीतत्त्व का लाभ मिलने में सहायता होती है ।
देवी मां की उपासना श्रद्धाभावसहित करना
नवरात्रि में किए जानेवाले धार्मिक कृत्य पूरे श्रद्धाभावसहित करने से पूजक एवं परिवार के सभी सदस्यों को शक्तितत्त्व का लाभ होता है । नवरात्रि की कालावधि में शक्तितत्त्व से संचारित वास्तुद्वारा वर्षभर इन तरंगों का लाभ मिलता रहता है। परंतु इसके लिए देवी मां की उपासना केवल नवरात्रि में ही नहीं; अपितु पूर्ण वर्ष शास्त्र समझकर योग्य पद्धति से करना आवश्यक है ।
संदर्भ – सनातन का ग्रंथ, ‘त्यौहार मनाने की उचित पद्धतियां एवं अध्यात्मशास्त्र‘, ‘धार्मिक उत्सव एवं व्रतों का अध्यात्मशास्त्रीय आधार’ एवं ‘देवीपूजन से संबंधित कृत्यों का शास्त्र‘