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मिथिला का लोक पर्व समा-चकेबा छठ के बाद से मिट्‌टी की बनने लगती हैं मूर्तियां, शाम को घरों में गूंजती है लोकगीत

पंकज झा शास्त्री 
मिथिला हिन्दी न्यूज :-समय के बदलाव और आधुनिकता की इस दौड़ में बहुत सारे त्योहार हम सभी के बीच से गायब होती दिख रही है या पीछे छूटे जा रहे हैं लेकिन मिथिलांचल की बहनें आज भी परंपरा को जीवंत रखते हुए प्रसिद्ध लोक उत्सव सामा -चकेवा मानती हुई आ रही है। समा चाकेवा पूजा का प्रारंभ छठ के खार्ना दिन से हो जाता है परन्तु जो बहने इस दिन समा चकेवा नहीं बना पाती है वो छठ के पारण दिन समा चकेबा बनाती है। छठ की सुबह उदयगामी सूर्य को अ‌र्ध्य के बाद शाम से मिथिलांचल क्षेत्र मैथिली सांस्कृतिक गीतों से गूंज उठती है छठ के साथ ही इसकी तैयारी भी पूरी कर ली जाती है। कार्तिक पूर्णिमा की रात में समा चकेबा का विसर्जन किया जाता है। खास बात यह है कि समा चकेबा के मूर्ति विसर्जन जल में नहीं बल्कि जुताई की गई खेतो में किया जाता है। मिथिला की संस्कृति की पहचान इस उत्सव के दौरान होता है। इस उत्सव के दौरान बहन अपने भाई के लंबी आयु एवं संपन्नता की मंगल कामना करती है। इस प्रसिद्ध लोक उत्सव को लेकर सामा चकेवा के अलावा चुंगला-चुंगली आदि की मूर्ति बहन अपने हाथों से निर्माण करती है। सामा खेलने के दौरान चुंगला -चुगली को जलाने का उद्देश चुगलपन के प्रतिक साथ ही सामाजिक बुराइयों का नाश करती है। शाम में सामा चकेवा का विशेष सिगार भी किया जाता है उसे खाने के लिए धान की बालियां दी जाती है। शाम होने पर गांव की युवतियां एवं महिलाएं अपनी सखी सहेलियों की टोली में मैथली लोकगीत गाती अपने-अपने घरों से बाहर निकलती है। उनके हाथ में बांस की बनी चंगेरा में मिट्टी की बनी सामा के साथ बाकी मूर्तियां पक्षियों एवं चुंगला कि मूर्तियां रखी जाती है। सामा चकवा को रात में युवतियों द्वारा खुले आसमान के नीचे उस शीत (यानी ओस ) पीने के लिए छोड़ दिया जाता है। इस खेल के माध्यम से बहनें अपनी भोजाई पर कटाक्ष भी करती है। इस पर्व के खेल में भौजाई द्वारा प्रताड़ित बहन की पीड़ा भी दर्शाया जाता है। एक कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण की पुत्री श्यामा की ऋषि कुमार चारुदत्त से ब्याह हुई थी। सामा रात में अपनी दासी के साथ वृंदावन ऋषि-मुनियों की सेवा करने आश्रम में जाया करती थी। इस बात की चुंगली श्री कृष्ण के दुष्ट मंत्री चबर को लग गई तथा उसने राजा को श्यामा के खिलाफ कान भरना शुरू कर दिया जिससे क्रोधित होकर श्री कृष्ण ने श्यामा को पक्षी बन जाने का श्राप दे दिया। श्यामा का यह रूप देख कर उसके पति चारुदत्त ने भगवान महादेव को प्रसन्न कर उसने भी पक्षी का रूप प्राप्त कर लिया। इसकी जानकारी श्यामा के भाई श्री कृष्ण के पुत्र शाम को हुई तो उसने बहन बहनोई के उद्धार के लिए पिताश्री कृष्ण की अराधना शुरू कर दी। शाम के वरदान मांगने पर श्री कृष्ण को सच्चाई का पता लगा जिस पर श्राप मुक्ति का उपाय बताते हुए उन्होंने कहा कि शाम एवं चारुदत्त मूर्ति बनाकर गीत गाए और शुड की मूर्ति बनाकर चारु की कारगुजारियों को उजागर किया जाता है। मिथिला में संध्याकालीन यह पर्व देखने पर लोगो का मन आनंदित हो जाता है।
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