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मोतिहारी जिले में करीब चार हजार मरीज करा रहे एड्स का इलाज

- जिले में इस वर्ष लगभग 350 एड्स के मरीज 
- जागरूकता ही एड्स से बचाव  

प्रिंस कुमार 

मोतिहारी, 28 दिसंबर।  
एड्स एक लाइलाज बीमारी है जो मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु (एचआईवी) संक्रमण के बाद होती है। एचआईवी संक्रमण के पश्चात मानवीय शरीर की प्रतिरोधक क्षमता घटने लगती है। एड्स का पूर्ण रूप से उपचार अभी तक संभव नहीं हो सका है। एचआईवी संक्रमित व्यक्ति में एड्स की पहचान संभावित लक्षणों के दिखने के पश्चात ही हो पाती है। जिले में इस वर्ष अभी तक 350 एड्स के मरीज हैं। यह बातें एड्स के नोडल सह जिला गैर संचारी रोग पदाधिकारी डॉ रंजीत कुमार राय ने सोमवार को हुई आम बैठक में कही । उन्होंने कहा कि सदर अस्पताल में एचआईवी की मुफ्त जांच की व्यवस्था है। जनवरी से अभी तक कुल 69000 लोगों ने एचआईवी का टेस्ट कराया है। यहां गर्भवतियों की भी एचआईवी जांच की व्यवस्था है। 
मुफ्त है इलाज 
सदर अस्पताल के आईसीटीसी काउंसलर डॉ मिथिलेश कुमार ने कहा कि सदर अस्पताल में लगभग चार से पांच हजार लोग एचआईवी का इलाज करा रहे हैं। इलाज के साथ -साथ वे मरीजों को जीवन के प्रति आत्मविश्वास के लिए प्रेरित करते हैं। वहीं उन मरीजों को भी लोगों में एड्स के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए कहते हैं।  

एचआईवी में कम हो जाती है रोग प्रतिरोधक क्षमता 
एड्स के नोडल सह जिला गैर संचारी रोग पदाधिकारी डॉ रंजीत कुमार राय ने बताया कि रोग रोकथाम एवं निवारण केंद्र द्वारा एड्स के संभावित लक्षण बताये गए हैं। एचआईवी संक्रमित व्यक्ति, जो किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित नहीं है, में एड्स के लक्षणों की जाँच विशेष रक्त जाँच (cd4+ कोशिका गणना) के आधार पर की जा सकती है। एचआईवी संक्रमण का अर्थ यह नहीं है कि वह व्यक्ति एड्स से भी पीड़ित हो। एड्स के लक्षण दिखने में 8 से 10 वर्ष तक का समय लग सकता है। एड्स की पुष्टि चिकित्सकों द्वारा जाँच के पश्चात ही की जा सकती है। एचआईवी संक्रमण शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को इस हद तक कम कर देता है कि इसके बाद शरीर अन्य संक्रमणों से लड़ पाने में अक्षम हो जाता है। इस प्रकार के संक्रमण को "अवसरवादी" संक्रमण कहा जाता है क्योंकि ये अवसर पाकर कमजोर हो रहे प्रतिरक्षा प्रणाली पर हावी हो जाते हैं जो बाद में एक बीमारी का रूप ग्रहण कर लेती है। एड्स प्रभावित लोगों में हुए कई संक्रमण, जो गंभीर समस्या पैदा कर सकते हैं या जानलेवा हो सकते हैं, को शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली नियंत्रित करती है। एड्स शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को इतना दुष्प्रभावित कर देता है कि इस गंभीर बीमारी की रोकथाम या इसका उपचार करना आवश्यक हो जाता है। 

छुआछूत की बीमारी नहीं एड्स 
 एड्स छुआछूत बीमारी नहीं है। इसलिए, पीड़ित व्यक्ति के साथ किसी प्रकार का अनावश्यक भेदभाव नहीं करें। यह हाथ मिलाने, साथ उठने-बैठने, कपड़े आदान-प्रदान करने से नहीं होता है। बल्कि, असुरक्षित शारीरिक संबंध, खून के आदान-प्रदान समेत अन्य प्रकार के संपर्क होने से होता है। साथ ही साथ किसी भी व्यक्ति को एड्स का लक्षण दिखे या महसूस हो तो तुरंत उन्हें चिकित्सकों से जाँच कराकर इलाज शुरू करना चाहिए। साथ हीं चिकित्सा परामर्श का पालन करना करना जरूरी है। ताकि परिवार के अन्य लोग इन बीमारियों के दायरे से दूर रह सकें और पीड़ित व्यक्ति का भी समय पर इलाज शुरू हो सके।
एड्स प्रभावित लोग अपने अधिकार पहचानें
नोडल डॉ रंजीत कुमार राय ने बताया भारतीय संविधान में सभी भारतीय नागरिकों को निम्नलिखित मौलिक अधिकार प्रदान किये गए हैं, समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के खिलाफ़ अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार, संस्कृति एवं शिक्षा का अधिकार, संवैधानिक अधिकार अतः यह मायने नहीं रखता है कि कोई व्यक्ति एचआईवी से प्रभावित है या नहीं। ये मौलिक अधिकार सभी को प्राप्त है । हमें उनके अधिकारों का सम्मान करते हुए उन्हें भी वही मान-सम्मान देना चाहिए जो हम अन्य सामान्य व्यक्तियों को देते हैं ताकि एचआईवी/एड्स प्रभावित लोग भी सामान्य जीवन जी सकें।

कोरोना काल में इन उचित व्यवहारों का करें पालन,- 
- एल्कोहल आधारित सैनिटाइजर का प्रयोग करें।
- सार्वजनिक जगहों पर हमेशा फेस कवर या मास्क पहनें।
- अपने हाथ को साबुन व पानी से लगातार धोएं।
- आंख, नाक और मुंह को छूने से बचें।
- छींकते या खांसते वक्त मुंह को रूमाल से ढकें।
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