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16 फरवरी को है बसंत पंचमी, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्‍व और मान्‍यताएं

पंकज झा शास्त्री 

हिंदू धर्म में माघ मास का बहुत अधिक महत्व माना जाता है क्योंकि इस माह में कई महत्वपूर्ण पर्व और बसंत पंचमी जैसे प्रमुख व पावन त्योहार पड़ते हैं। खासकर बसंत पंचमी का त्योहार, इस पावन दिन देवी सरस्वती के अवतरण दिवस के रुप में मनाया जाता है। इस दिन देवी सरस्वती की विधि विधान से पूजा की जाती है। लेकिन बसंत पंचमी सिर्फ इसलिये ही नहीं बल्कि कई अन्य मायनों में भी बहुत महत्व रखता है।
इस साल यह त्योहार 16फरवरी2021, दिन मंगलवार को है। बसंत पंचमी का उत्सव न सिर्फ भारत में बल्कि भारत के पड़ोसी देशों बांग्लादेश और नेपाल में काफी उत्साह से मनाया जाता है। माघ माहीने के शुक्ल पक्ष केपांचवे दिन बसंत पंचमी पड़ती है और इस दिन भगवान विष्णु और कामदेव की पूजा की जाती है। हालांकि इस दिन मुख्य रुप से मां सरस्वती की पूजा करने का विधान है लेकिन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कामदेव और इनकी पत्नी रति धरती पर आते हैं और प्रकृति में प्रेम रस का संचार करते हैं इसलिए बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती के साथ कामदेव और रति की पूजा का भी विधान है। 
पंचमी के पर्व पर जौ व गेहूं की बालियां, टेशू के फूल मां शारदा को अर्पित कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। वसंत पंचमी आनन्दोत्सव है, इसके अधिष्ठाता प्रजापालक विष्णु और श्रीकृष्ण है। इसीलिए भगवान कृष्ण की लीलाभूमि ब्रज में वसंतोत्सव की प्रधानता है। इस वर्ष मंगलवार के साथ अश्विनी नक्षत्र का संयोग अमृतसिद्धि महायोग व सिद्धि योग भी बन रहा है, जो विद्यार्थियों के लिए खास है। भौमाश्विनी योग का संयोग दुर्लभ है, जो रात्रि 10.55 बजे से दूसरे दिन सूर्योदय तक रहेगा। जो विद्यार्थी प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग ले रहे हैं, उन्हें इस योग में मां की साधना से सरस्वती की कृपा प्राप्त होना सभव है। वसंत पंचमी की मान्यता अबूझ मुहूर्त के रूप में है। लेकिन इस वर्ष वसंत पंचमी पर शुक्र का तारा अस्त होने से विवाह आदि शुभ कार्यों के मुहूर्त पंचांगकारों ने निर्धारित नहीं किए हैं। शुक्र व गुरु की विवाह आदि कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका है। शुक्र काम जीवन का महत्वपूर्ण कारक माना जाता है। शुक्र का तारा अस्त होने से विवाह आदि मंगल कार्य इस दिन नहीं हो सकेंगे।
वसंत पंचमी को सरस्वती पूजन के साथ ही सरस्वती साधक वैदिक विद्वानों की पूजा का भी विधान है। वैदिक विद्वान वेदों के रक्षक हैं। वेदों को कंठ पर धारण किए हैं। इसलिए यह वेदों को धारण करने वाले वेदरक्षक वैदिक विद्वानों के सम्मान और सत्कार का दिन है। इस दिन से ही वेदाध्ययन आरम्भ करने और विद्या अध्ययन की गुरुकुल परम्परा हमारे देश में आज भी प्रचलित है। 

इस बार बसंत पंचमी रेवती नक्षत्र में आरंभ हो रहा है।
सरस्वती पूजन के लिए शुभ मुहूर्त 16 फरवरी 2021 मंगलवार को प्रातः 06:27 से दिन के 07:45 तक इसके बाद दिन के 09:14 से 01:24 तक अति उत्तम रहेगा।
चंद्रमा इस दिन मीन राशि मे रात्रि 08:21 तक रहेगा इसके उपरांत चंद्रमा मेष राशि में होगा।
पंचमी तिथि आरंभ 15 फरवरी के रात्रि 02:57 के उपरांत और पंचमी तिथि समापन 16 फरवरी के रात्रि 04:45 तक। उपरोक्त समय सारणी में अपने स्थानीय पंचांग अनुसार कुछ अंतर हो सकता है।

आप चाहे तो बसंत पंचमी के दिन विशेष पूजा अपने राशि अनुसार भी कर सकते है जो अति शीघ्र लाभकारी हो सकता है।

 मेष- हनुमान जी की पूजा कर उनके बाएं चरण का सिन्दूर लेकर वसंत पंचमी से नित्य तिलक करें तथा हनुमान चालीसा का पाठ करें। विद्या व बुद्धि के लिए 'ऐं' का जप करें।

वृष- इमली के पत्ते 22 नग लेकर 11 पत्ते माता सरस्वती के यंत्र या चित्र पर चढ़ाएं। 11 पत्ते अपने पास सफेद वस्त्र में लपेटकर रखें, सफलता मिलेगी।

मिथुन- भगवान गणेश का यथा उपचार-पूजन कर यज्ञोपवीत चढ़ाएं तथा 21 बार 'ॐ गं गणपतये नम:' का जप कर चढ़ाएं। विद्या प्राप्ति के विघ्न दूर होंगे।

कर्क- माता सरस्वती के यंत्र या चित्र पर 'ॐ ऐं सरस्वत्यै नम:' जप कर आम के बौर चढ़ाएं।

सिंह - 'ॐ ऐं नम:..' गायत्री मंत्र 'नमो ऐं ॐ' से संपुटित कर जपें, लाभ होगा।

कन्या - पुस्तक, ग्रंथ इत्यादि दान करें तथा 'ॐ ऐं नम:' का जप करें।

तुला - ग्रंथ तथा सफेद वस्त्र किसी ब्राह्मण कन्या को पूजन कर दान करें तथा सफेद मिठाई खिलाएं। 'ॐ ऐं नम:' का जप करें।

वृश्चिक - माता सरस्वती का पूजन कर श्वेत रेशमी वस्त्र चढ़ाएं तथा कन्याओं को दूध से बनी मिठाई खिलाएं। 'ॐ ऐं सरस्वत्यै नम:' का जप करें।

धनु - माता सरस्वती का पूजन करें तथा सफेद चंदन चढ़ाएं और वस्त्र दान करें।

मकर - सूर्योदय के पहले ब्राह्मी नामक औषधि का सेवन कर 'ॐ ऐं सरस्वत्यै नम:' से मंत्रि‍त कर पी लें। सफलता कदम चूमेगी।

कुंभ - माता सरस्वती का पूजन कर कन्याओं को खीर खिलाएं तथा 'ॐ ऐं नम:' जपें।

मीन - अपामार्ग की जड़ शास्त्रीय तरीके से निकालकर पुरुष अपनी दाहिनी भुजा तथा स्त्री अपनी बाईं भुजा पर 'ॐ ऐं सरस्वत्यै नम:' की 11 माला, स्फटिक माला से कर सफेद वस्त्र में बांधकर धारण करें।

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