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टीबी रोगियों की खोज और उपचार में अब प्राइवेट डॉक्टर देंगे साथ

- प्राइवेट चिकित्सक को नए मरीज खोजने पर मिलेंगे 500 रुपए
- यूएसडीटी, एचआईवी और ब्ल्ड शुगर की जांच सरकारी अस्पताल में ही कराएं

प्रिंस कुमार 
सीतामढ़ी, 2 मार्च। 

टीबी मरीजों की खोज व सरकार द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं का लाभ दिलाने के लिए निजी चिकित्सकों के लिए शहर के एक निजी होटल में कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसका उद्घाटन सिविल सर्जन डॉ सतीश चंद्र सहाय वर्मा ने किया। कार्यशाला के दौरान डॉ वर्मा ने कहा कि भारत सरकार का लक्ष्य है कि पूरे देश को 2025 तक टीबी मुक्त बनाना है। जिसके लिए टीबी हारेगा, देश जीतेगा का नारा भी दिया गया है। अब निजी (प्राइवेट) और सरकारी चिकित्सक मिलकर टीबी रोगियों की खोज कर उसे सरकारी अस्पताल में इलाज एवं जांच के लिए प्रेरित करेंगे । वहीं कार्यशाला के दौरान जिला संचारी रोग पदाधिकारी डॉ मनोज कुमार ने पीपीटी के माध्यम से प्राइवेट प्रैक्टिशनर को जिले में टीबी कार्यक्रम की पूर्ण जानकारी के साथ वस्तु स्थिति से भी अवगत कराया। डॉ मनोज ने कहा कि टीबी के 2017 से 2025 की रणनीति के अनुसार भारत को टीबी मुक्त देश और टीबी से मृत्यु को जीरो करना है, प्रति एक लाख पर अभी 217 मरीज की संख्या को 43 पर तथा मृत्युदर को 90 प्रतिशत कम करने का लक्ष्य रखा गया है। प्राइवेट डॉक्टरों से अपील करते हुए डॉ मनोज ने कहा कि वैसे मरीज जो उनके पास टीबी के इलाज के लिए आते हैं उन्हें यूएसडीटी, एचआईवी और ब्ल्ड शुगर की जांच कराने सरकारी अस्पताल में जरूर भेजें। वहीं टीबी मरीजों की पहचान करने पर प्राइवेट चिकित्सकों को भी पांच सौ रुपए दिए जायेंगे । 

2020 में 66 प्रतिशत मरीज हुए टीबी मुक्त 
जिला संचारी रोग पदाधिकारी डॉ मनोज कुमार ने पीपीटी के माध्यम से समझाते हुए कहा कि टीबी में जिले का प्रदर्शन अपेक्षाकृत अच्छा रहा पर हमें इसमें बहुत इजाफा करने की आवश्यकता है। 2020 में नए मरीजों की खोज के लिए कुल लक्ष्य 5330 का पीछा करते हुए कुल 2835 नए मरीजों की खोज की गयी है। जो लक्षित मरीजों का 53 प्रतिशत है। इस नए टीबी रोगियों में प्राइवेट डॉक्टरों का सहयोग 22.36 प्रतिशत और यक्ष्मा विभाग का 30.82 प्रतिशत है। 2020 में कुल 3247 टीबी मरीजों में 45 प्रतिशत मरीजों को यूएसडीटी की जांच आरटी-पीसीआर से की गयी। वहीं 2019 में कुल 66 प्रतिशत टीबी मरीज टीबी मुक्त हो गए। 
गरीबी और कुपोषण टीबी के कारक
पीपीटी को समझाते हुए डॉ मनोज कुमार ने कहा कि टीबी को हराने के लिए सबसे पहले हमारे समाज को आगे आने की जरूरत है। वहीं गरीबी और कुपोषण टीबी के सबसे बड़े कारक हैं। इसके बाद अत्यधिक भीड़, कच्चे मकान, घर के अंदर प्रदूषित हवा, प्रवासी, डायबिटीज, एचआईवी, धूम्रपान भी टीबी के कारण होते हैं। टीबी मुक्त करने के लिए सक्रिय रोगियों की खोज, प्राइवेट चिकित्सकों की सहभागिता, मल्टीसेक्टरल रेस्पांस, टीबी की दवाओं के साथ वैसे समुदाय के बीच भी पहुंच बनानी होगी जहां अभी तक लोगों का ध्यान नहीं जा पाया है। 
मीडिया का अहम रोल
टीबी के कारण और सरकार द्वारा दी जा रही सुविधाओं को जन-जन तक पहुंचाने में मीडिया अहम रोल अदा कर सकता है। इसलिए सभी मीडिया प्रतिनिधियों से आग्रह है टीबी नियंत्रण कार्यक्रम को कवरेज दें ताकि भारत को टीबी मुक्त बनाया जा सके। 
निक्षय योजना का मिलता है लाभ 
डॉ मनोज ने कहा कि निक्षय योजना के तहत प्रत्येक टीबी मरीज को पूरे इलाज के दौरान 500 रुपये दिए जाते हैं ताकि वह अपने पोषण की जरूरतों को पूरा कर सके। यह राशि सीधे टीबी मरीजों के बैंक खाते में जाता है जो कि बिल्कुल ही पारदर्शी व्यवस्था से गुजरता है। मौके पर सिविल सर्जन डॉ सतीश चंद्र सहाय, एसीएमओ डॉ सुरेन्द्र चौधरी, डीएमओ डॉ रविन्द्र कुमार यादव, आईएमए के अध्यक्ष डॉ युगल किशोर प्रसाद, डॉ सीताराम सिंह, पुपरी आईएमए के अध्यक्ष डॉ मृत्युंजय कुमार, सचिव डॉ एनएम शरण, सीडीओ कार्यालय से रंजन कुमार सहित जीत प्रोजेक्ट के कोओर्डिनेटर समेत अन्य प्राइवेट चिकित्सक मौजूद थे।

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