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दरभंगा के कुशेश्वरस्थान में जहां दूर होता है कुष्ठ रोग!नकलन में निष्कलंक महादेव विराजित

अनूप नारायण सिंह 

मिथिला हिन्दी न्यूज :- दरभंगा जिलान्तर्गत कुशेश्वरस्थान को मिथिला का बाबाधाम भी कहा जाता है |यह स्थान दरभंगा जिला मुख्यालय से ७० कि०मी० दक्षिण-पूर्व में स्थित है | यहाँ कुशेश्वर महादेव का मन्दिर अवस्थित है |जहाँ सम्पूर्ण मिथिलांचल , नेपाल के पड़ोसी जिला के अलावा प० बंगाल और झारखंड से भी भक्त यहाँ सालों भर यहाँ आते रहते हैं लेकिन श्रावण में सभी सोमवारी के अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहाँ आकर बाबा कुशेश्वर नाथ की जलाभिषेक करते हैं |यहाँ लोग आकर पूजा अर्चना के साथ ही मांगलिक कार्य एवं अन्य संस्कार कार्यों के दौरान आकर बाबा कुशेश्वर नाथ से आशीर्वाद ग्रहण करते हैं | कुशेश्वर स्थान तीन नदियों के मुहाने पर प्रकृति के बीच स्थित हैं |यहाँ आने पर भक्तों को शान्ति की परम अनुभूति मिलती है |कुशेश्वर स्थान की चर्चा पुराणों में भी की गयी है | अतः श्रावण महीने में लाखों भक्त यहाँ आते हैं | कुछ लोग कुशेश्वर स्थान को भगवान राम के पुत्र कुश से जोड़ कर देखते हैं तो कुछ लोग राजा कुशध्वज से जोड़ते हैं |कहा जाता है कि मन्दिर का निर्माण राजा कुशध्वज ने करबाया था इसलिए इस मन्दिर का नाम इन्हीं के नाम पर कुशेश्वर स्थान रखा गया| इस महादेव स्थान का नाम कुशेश्वर स्थान क्यों पड़ा इस सम्बन्ध में कई कई कथाएँ प्रचलित हैं | नरक निवारण चतुर्दशी एवं महाशिवरात्रि के अवसर पर कुशेश्वर स्थान के बाबा मन्दिर में विशेष पूजा-अर्चना एवं आयोजन होते हैं |माघ महीना में भी भक्त यहाँ आकर जलाभिषेक करते हैं |इस मन्दिर के पुजारी हैं अमरनाथ झा | उनका कहना है कि कुशेश्वर स्थान उपासना के साथ ही साधना का भी बहुत बड़ा केंद्र रहा है | उन्होंने कहा कि यहाँ अंकुरित शिव स्थापित हैं | इस सम्बन्ध में उसने एक कथा भी सुनाई जो कि इस प्रकार है –हजारों साल पहले यहाँ कुश का घना जंगल था | जहां पर बहुत से चरवाहा अपनी अपनी पशुओं को चराने के लिए आया करता था |एक बार की बात है रामपुर रोता गाँव का एक चरवाहा जिसका नाम खागा हजारी था देखा कि एक स्थान पर बहुत से दुधारू गाय अपनी दूध गिरा रही है |यह बात उसने लोगों को जाकर बताई | गाँव के लोग भी आकर यह दृश्य देखे | जिस जगह पर दूध गिर रहा था उस जगह की खुदाई की गयी तो वहां से एक शिव लिंग निकला |तभी से वहां पर भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाने लगी | और यही वजह है के इन्हें अंकुरित महादेव कहा जाता है |
१९०२ ई० में यहाँ फूस का मन्दिर बनाया गया |फिर १९७० ई० में स्थानीय व्यापारियों ने मिलकर बाबा मन्दिर का निर्माण कराया | कुशेश्वर बाबा की दर्शन के लिए यहाँ सावन सबसे अधिक श्रद्धालु यहाँ आते हैं |

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