मिथिला हिन्दी न्यूज :- ऐसी मान्यता है कि इस दिन विशेष तौर पर औजारों, निर्माण कार्य से जुड़ी मशीनों, दुकानों, कारखानों आदि की पूजा करने से कारोबार में बढ़ोतरी होती है. भगवान विश्वकर्मा को संसार का पहला इंजीनियर और वास्तुकार माना जाता है. कहा जाता है कि इन्होनें ब्रह्मा जी के साथ मिलकर इस सृष्टि का निर्माण किया था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार विश्वकर्मा जयंती के दिन फैक्ट्री, शस्त्र, बिजनेस आदि की पूजा की जाती है। जिससे कि बिजनेस और रोजगार में तेजी से तरक्की हो।
ऐसी मान्यता है कि इस दिन हर किसी को विश्वकर्मा देवता की पूजा करनी चाहिए क्योंकि उन्होंने सृजन का निर्माण किया था। जिससे आपके हर बिगड़े हुए काम बनेंगे। साथ ही भगवान की कृपा आपके ऊपर हमेशा रहेगी।
विश्वकर्मा पूजा का शुभ मुहूर्त
पूजा के लिए शुभ मुहूर्त 17 सितंबर को सुबह 6:07 बजे से लेकर 18 सितंबर शनिवार को दोपहर 3:36 बजे तक है
विश्वकर्मा देवता की पूजा विधि
धार्मित मान्यताओं के अनसार प्राचीन काल में सभी राजधानियों का निर्माण विश्वकर्मा जी ने किया था। जिसमें स्वर्ग लोक, द्वारिका, हस्तिनापुर, रावल की लंका शामिल है।
इस दिन सबसे पहले नित्य कामों ने निवृत्त होकर स्नान कर लें। इसके बाद भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करें। इसके साथ ही पूजा के लिए साबुत चावल, फल, रोली, सुपारी, धूप, दीपक, रक्षा सूत्र, दही, मिठाई, शस्त्र, बही-खाते, आभूषण, कलश और भगवान विश्वकर्मा की तस्वीर रख लें। इसके साथ ही अष्टदल से बनी रंगोली बनाएं।
अब इस रंगोली में भगवान विश्वकर्मा की तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद उन्हें फूल चढ़ाते हुए बोले -हे विश्वकर्मा जी आएं और हमारी पूजा को स्वीकार करें। इसके बाद अपनी बिजनेस से जुड़ी चीजें, शस्त्र, आभूषण, औजार आदि में रोली और अक्षत लगाकर फूल चढ़ाएं और सतनजा पर कलश रख दें।
अब इस कलश में रोली-अक्षत लगाएं और दोनों चीजों को हाथों में लेकर -'ऊं पृथिव्यै नम: ऊं अनंतम नम: ऊं कूमयि नम: ऊं श्री सृष्टतनया सर्वासिद्धया विश्वकर्माया नमो नम:' मंत्र पढ़कर सभी चीजों पर रोली और अक्षत छिड़क दें। इसके बाद फूल चढ़ाएं। इसके बाद भगवान को भोग लगाएं। फिर जल पिलाएं। इसके बाद दीपक जलाकर आरती करें और आचमन कर दें। अब प्रसाद कर किसी को दें।
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