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वाराणसी कोर्ट ने खारिज की 'शिवलिंग' की कार्बन डेटिंग की मांग, हिंदू पक्ष ने लगाई थी याचिका

संवाद 
ज्ञानवापी मस्जिद में कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग करवाए जाने के फ़ैसले को वाराणसी की अदालत ने खारिज कर दिया है.चार महिला याचिकाकर्ताओं ने बनारस के ज़िला जज की अदालत में सील किए गए वज़ूखाने की कार्बन डेटिंग करने की मांग की थी.वैज्ञानिक जांच के ज़रिए याचिकाकर्ता ये पता करना चाहते हैं कि कथित शिवलिंग कितना लंबा, कितना चौड़ा और कितना अंदर तक है. उनका कहना है कि इस जांच के बाद ये साफ हो जाएगा कि ये फव्वारा है या शिवलिंग.वहीं मुस्लिम मुस्लिम पक्ष ने इस मांग का विरोध किया था. अंजुमन इंतेज़ामिया मस्जिद कमेटी के वकील अखलाक अहमद इस बारे में कहते हैं कि कार्बन डेटिंग ऐसी चीजों की होती है जो कार्बन अवशोषित करें.
उन्होंने कहा, "जैसे इंसान है, वो मर गया उसकी हड्डियों की जांच हो सकती है, जानवर हैं. पेड़ पौधे भी हैं. ये पत्थर और लकड़ी की कार्बन डेटिंग नहीं हो सकती है. क्योंकि ये कार्बन एब्जॉर्ब नहीं कर सकते हैं."इसी पर कोर्ट ने बहस को सुनकर पिछले हफ्ते अदालत ने फैसला सुरक्षित रखा था, जिसे आज सुनाया गया है.
इसी साल मई के महीने में ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे हुआ था, जिसके बाद हिन्दू पक्ष ने दावा किया था कि मस्जिद के वज़ूखाने के बीचों बीच एक 'शिवलिंग' बरामद हुआ है. जिसके बाद एक निचली अदालत ने उसे सील करने के आदेश दिए थे.
ज्ञानवापी मामले में इस साल क्या-क्या हुआ?

अप्रैल में सिविल कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे करने और उसकी वीडियोग्राफ़ी के आदेश दिए थे.
मस्जिद इंतज़ामिया ने कई तकनीकी पहलुओं के आधार पर इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी, जो ख़ारिज हो गई.
मई में मस्जिद इंतज़ामिया ज्ञानवापी मस्जिद की वीडियोग्राफ़ी को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया.
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू होने से पहले 16 मई को सर्वे की रिपोर्ट फ़ाइल हुई.
16 मई को वाराणसी सिविल कोर्ट ने मस्जिद के अंदर उस इलाक़े को सील करने का आदेश दिया, जहाँ शिवलिंग मिलने का दावा किया गया था. वहाँ नमाज़ पर भी रोक लगा दी गई.
17 मई को सुप्रीम कोर्ट ने 'शिवलिंग' की सुरक्षा वुजूख़ाने को सील करने का आदेश दिया, लेकिन साथ ही मस्जिद में नमाज़ जारी रखने की अनुमति दे दी.
20 मई को सुप्रीम कोर्ट ने ये मामला वाराणसी की ज़िला अदालत में भेज दिया, सुप्रीम कोर्ट ने अदालत से यह तय करने को कहा है कि मामले आगे सुनवाई के लायक है या नहीं.

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