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अटूट जन आस्था का महापर्व छठ और पटना शहर

अनूप नारायण सिंह 
छठ के जितने भी लोकगीत बने उसमें पटना शहर की चर्चा क्यों है इसके पीछे कारण है गंगा नदी के किनारे पर बसे बिहार की राजधानी इस ऐतिहासिक शहर का छठ के साथ जुड़ाव देश दुनिया में जहां कहीं भी बिहार और पूर्वोत्तर के लोग हैं छठ को मनाते हैं पर जो आस्था जो रौनक पटना के गंगा घाटों पर छठ को लेकर है वह कहीं नहीं हर किसी की दिली तमन्ना होती है कि अपने जीवन में एक बार पटना के गंगा घाटों पर छठ अवश्य करें। 2 वर्षों के बाद इस बार पटना के छठ का रौनक पुनः वापस लौट आया है बाजार भी सजा है पूरा पटना छठमय हो गया है। पूरा शहर साफ सुथरा नजर आ रहा है गली मोहल्ले तक को लोगों ने खुद से साफ किया है सर के दो ही जा रही है हर तरफ से छठ से जुड़ी सामग्रियों का वितरण किया जा रहा है हर कोई आस्था के इस सागर में डुबकी लगाने को आतुर है पटना में छठ लोक आस्था के साथ जुड़ जाता है अमीरी गरीबी ऊंच-नीच का भेदभाव मिट जाता है हर कोई छठ व्रती की सेवा में खुद को तल्लीन पाता है ऐसी एकता और इस महापर्व के प्रति आस्था अन्य शहरों में नहीं दिखती है पटना में छठ व्रतियों की सेवा के लिए छठ घाटों से लेकर गली मोहल्ले तक में लोग खड़े होते हैं। छठ समूह यानी संगठन का महापर्व इस में उपयोग होने वाली चीज है एकल नहीं होती बल्कि सामूहिक होती है छठ में एक समूह में बंधने का संदेश भी देता है और इस संदेश का सबसे जीता जागता नमूना है पटना जैसा शहर जो कम से कम छठ के समय खुद से जग जाता है लोग सरकार और जिला प्रशासन के भरोसे नहीं खुद के भरोसे शहर को साफ रखते हैं छठ में 4 दिन आप पटना में घूम आइए कहीं भी आपको तनिक ही गंदगी नजर नहीं आएगी हर कोई अपने अपने इलाके की सफाई में लगा रहेगा सड़क चकाचक चारों तरफ एक अजीब सा भक्तिमय माहौल। 

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