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जिस मुख्यमंत्री के दौर में बिहार रहा सबसे उन्नत राज्य, मौत के बाद तिजोरी खोली गई तो सभी रह गए दंग

संवाद 


पूरा बिहार अपने पहले मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह की जयंती पर उन्हें याद कर रहा है। बिहार केसरी डॉ. श्रीकृष्ण सिंह की जयंती पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित किया। बिहार विधानसभा भवन शताब्दी वर्ष समारोह के मौके पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत तमाम वक्ताओं ने महान राजनेता श्रीकृष्ण सिंह को याद किया। श्रीकृष्ण सिंह को आधुनिक बिहार का निर्माता कहा जाता है। बिहार के पहले सीएम को पूरे राज्य में बेहद सम्मान मिलता है। इसकी वजह यह है कि वे एक राजनेता के तौर पर लोकतांत्रिक मूल्यों को बखूबी पालन किया करते थे। आइए उनके जीवने से खास बातों पर नजर डालते हैं।स्वतंत्रता सेनानी रहे श्रीकृष्ण सिंह बेहद ईमानदार राजनेता माने जाते रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर ने बताया कि आज की राजनीति में राजनेताओं का भ्रष्ट होना सबसे बड़ी बुराई बन गई है। ऐसे में श्रीकृष्ण सिंह को याद किए जाने की जरूरत है। वरिष्ठ पत्रकार ने बताया कि 1961 में बिहार के मुख्य मंत्री श्रीकृष्ण सिंह के निधन के 12 वें दिन राज्यपाल की उपस्थिति में उनकी पर्सनल तिजोरी खोली गयी थी। उस वक्त उनकी तिजोरी में कुल 24 हजार 500 रुपए मिले थे। ये रकम चार लिफाफों में रखे मिले थे। एक लिफाफे में रखे 20 हजार रुपए प्रदेश कांग्रेस कमेटी के लिए थे। दूसरे लिफाफे में तीन हजार रुपए मुनीम जी की बेटी की शादी के लिए थे। तीसरे लिफाफे में एक हजार रुपए थे जो महेश बाबू (महेश प्रसाद सिन्हा) की छोटी कन्या के लिए थे। चौथे लिफाफे में 500 रुपए श्रीकृष्ण सिंह की सेवा करने वाले खास नौकर के लिए थे।बिहार के पहले सीएम श्रीकृष्ण सिंह परिवारवाद के भी खिलाफ रहे। बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान चंपारण के कांग्रेसी कार्यकर्ता उनके बड़े बेटे शिवशंकर सिंह को चुनाव में प्रत्याशी बनाने की मांग लेकर पटना पहुंचे थे। इस पर श्रीकृष्ण सिंह ने कहा कि अगर शिवशंकर सिंह प्रत्याशी बनेंगे तो वह राजनीति से दूर हो जाएंगे। उन्होंने जोर देकर कहा कि पिता पुत्र एक साथ चुनाव में नहीं उतर सकते हैं। हालांकि श्रीकृष्ण सिंह की डेथ के बाद छोटे बेटे बंदीशंकर सिंह विधायक बने। इसके बाद चंद्रशेखर सिंह सरकार में मंत्री भी रहे। हालांकि उसके बाद उनके परिवार से कोई राजनीति में सक्रिय नहीं रहा।श्रीकृष्ण सिंह किसी भी विधानसभा चुनाव में प्रचार नहीं करते थे। वे कहते कि अगर वे सच्चे और समाजसेवक हैं तो जनता खुदबखुद उन्हें वोट देगी। क्योंकि जनप्रतिनिधि को पांच साल तक काम करने का मौका मिलता है ऐसे में अगर वे सही से अपनी ड्यूटी का निर्वाह करेंगे तो उन्हें प्रचार करने की क्या जरूरत है। श्रीकृष्ण सिंह का जन्म 21 अक्टूबर 1887 को ननिहाल नवादा जिले के खनवा गांव में हुआ था। हालांकि उनका पैतृकभूमि बरबीघा जिले के माउर में है। युवा अवस्था से ही श्रीकृष्ण सिंह स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए थे। वह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आह्वान पर राजनीति में आए थे। श्रीबाबू 1916 में वाराणसी में गांधीजी को सुनने और देखने पहुंचे थे। 1917 में जब गांधीजी ने चंपारण सत्याग्रह की शुरुआत की थी तब श्रीकृष्ण सिंह ने किसानों के जत्थे का नेतृत्व किया था।श्रीकृष्ण सिंह वह 1946–1961 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे। उनके सहयोगी डॉ. अनुग्रह नारायण सिंह उनके मंत्रिमंडल में उपमुख्यमंत्री और वित्तमंत्री के रूप में आजीवन साथ रहे। श्रीकृष्ण सिंह के महज 10 साल के कार्यकाल में बिहार में उद्योग, कृषि, शिक्षा, सिंचाई, स्वास्थ्य, कला व सामाजिक क्षेत्र में कई कार्य हुये। उनमें आजाद भारत की पहली रिफाइनरी- बरौनी ऑयल रिफाइनरी, आजाद भारत का पहला खाद कारखाना- सिन्दरी और बरौनी रासायनिक खाद कारखाना, एशिया का सबसे बड़ा इंजीनियरिंग कारखाना-भारी उद्योग निगम (एचईसी) हटिया, देश का सबसे बड़ा स्टील प्लांट-सेल बोकारो, बरौनी डेयरी, एशिया का सबसे बड़ा रेलवे यार्ड-गढ़हरा, आजादी के बाद गंगोत्री से गंगासागर के बीच प्रथम रेल सह सड़क पुल-राजेंद्र पुल, कोशी प्रोजेक्ट, पुसा व सबौर का एग्रीकल्चर कॉलेज, बिहार, भागलपुर, रांची विश्वविद्यालय इत्यादि जैसे कई उदाहरण हैं। उनके शासनकाल में संसद के द्वारा नियुक्त फोर्ड फाउंडेशन के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री श्री एपेल्लवी ने अपनी रिपोर्ट में बिहार को देश का सबसे बेहतर शासित राज्य माना था और बिहार को देश की दूसरी सबसे बेहतर अर्थव्यवस्था बताया था।

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