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जब मुंबई में इस अभिनेत्री को आ गई थी फुटपाथ पर रहने की नौबत

अनूप नारायण सिंह 
जब सितारे चमकने लगते हैं तो उनकी संघर्ष गाथा किसी को नजर नहीं आती आज हम आपको बताने जा रहे हैं बिहार मूल की भोजपुरी की चर्चित अभिनेत्री प्रियंका महाराज की संघर्ष गाथा
फिल्मों में काम कर के बड़ा कलाकार बनने का सपना तमाम लड़के लड़कियां देखते हैं. कई कलाकारों का शुरुआती सफर बहुत ही मुश्किल भरा होता है, जिस से आने वाले लोगों को सीख भी मिल सकती है. इस के जरीए वे तमाम तरह की परेशानियों से बच सकते हैं. बिहार की राजधानी पटना की रहने वाली प्रियंका महाराज के फिल्मी सफर की कहानी काफी मुश्किलों भरी रही, पर अब वे कामयाबी की राह पर हैं. जद्दोजेहद के उस दौर में वे काफी परेशान थीं. उन्हें लग ही नहीं रहा था कि कामयाबी मिलेगी.

प्रियंका महाराज की मां टीचर थीं. अब वे नौकरी छोड़ कर बेटी के साथ रहती हैं. प्रियंका के पिता इंस्पैक्टर थे. पहले वे बेटी को फिल्म लाइन में नहीं भेजना चाहते थे, पर जब बेटी की जद्दोजेहद को देखा, तो मदद के लिए आगे बढ़े. आज वे इस दुनिया मे नही हैं.

अपने मुश्किल दिनों की यादें प्रियंका महाराज ने बातचीत में बताईं. पेश हैं, उस के खास अंश:

पटना से मुंबई का सफर कैसा रहा?

पटना से मैं सब से पहले दिल्ली पहुंची थी. मुझे ‘मिस इंडिया’ बनना था. डांस और मौडलिंग मेरी हौबी थी. घर में किसी का कोई सहयोग नहीं था. पापा तो कतई नहीं चाहते थे कि मैं फिल्म या मौडलिंग लाइन में काम करूं. ऐसे में मैं पापा से छिप कर डांस सीखती थी.

मैं ने कभी हार नहीं मानी. मैं अपनी कोशिश में लगी रही. ऐक्टिंग सीखने के लिए मैं ने थिएटर किया, फिर टैलीविजन पर ‘बिग मैजिक’ पर ‘पुलिस फाइल’ सीरियल में काम करने का औफर मिल गया. इस के बाद ‘दूरदर्शन’ पर भी एक सीरियल किया. मौडलिंग भी शुरू कर दी. सब ठीकठाक चल रहा था. थोड़ा सा मम्मी का सहयोग मिलने लगा. बाद में पापा ने भी विरोध करना बंद कर दिया.

जद्दोजेहद का दौर कब आया?

शुरुआती कामयाबी के बाद ऐसा लगा कि सब ठीक है. बिहार में भोजपुरी फिल्में बहुत चलती हैं. ‘निरहुआ’ का हीरो के रूप में बड़ा नाम है. फेसबुक पर एक लड़के से संपर्क हुआ. उस ने खुद को ‘निरहुआ’ का भांजा बताया और मुझ से बोला कि वह सीरियल और फिल्म दोनों में काम दिला देगा. उस ने मुझे दिल्ली बुलाया.

मैं अपनी मां के साथ उस की बात को सच मान कर दिल्ली चली आई. इस के पहले मुझे बिराज भट्ट के साथ फिल्म ‘जिद्दी’ का औफर मिला था. शूटिंग शुरू नहीं हो रही थी. पूरा एक महीना मैं अपनी मां के साथ दिल्ली में ही रही.

वह लड़का आया और बोला कि दिनेशजी ने मुझे भेजा है. उन के पास समय नहीं है. उस ने आर्टिस्ट कार्ड बनाने के लिए 60 हजार रुपए मांगे. हम लोगों ने दे दिए. हमें लगा कि जब सीरियल में काम मिल जाएगा, तो यह पैसा वापस आ जाएगा.

फिर सच कैसे सामने आया?

हम लोग एक महीने तक वहां रहे, पर कोई सीरियल नहीं मिला. तब हम ने सच पता करने की कोशिश शुरू की, तो पता चला कि वह लड़का दिनेशजी का भांजा नहीं है. मैं झांसे में आ गई थी.

मेरी मां की तबीयत खराब हो गई. मैं बहुत डर गई. फिर मुंबई में फिल्म करने का एक औफर मिला. हम लोग वहां से मुंबई चले आए, जोगेश्वरी इलाके में होटल में रहने लगे.

वहां भोजपुरी के कुछ कलाकारों, प्रोड्यूसरों व डायरैक्टरों से मिली. ऐसे में 20 दिन बीत गए. हमारे पास पैसे खत्म हो गए थे. होटल वाले ने हमें निकाल दिया. वहां रहनेखाने को पैसा नहीं था.

हम स्टेशन पर निराश बैठे थे. वहां पर कुछ लोगों से बात हुई. बड़ी मुश्किल से रहने के लिए होटल मिला. वहां रहते हुए मैं छोटे काम कर के पैसा कमाने लगी. इस बीच फिल्म ‘जिद्दी’ की शूटिंग शुरू हो गई. तब पैसा मिला.

यह सब पापा को कब पता चला?

फिल्म ‘जिद्दी’ की शूटिंग के बाद पापा को सबकुछ बताया. तब से वे हमारा सहयोग करने लगे. फिर मुझे कई फिल्में मिलने लगीं. मैं फिल्मों के साथ डांस शो भी करने लगी

मेरी आने वाली फिल्मों में ‘नसीब’, ‘जान तोह पे लुटाइब’, ‘बनारसी बबुआ’, ‘इश्कवाले’ और ‘घूंघट में के बा’ खास हैं.

भोजपुरी फिल्में खुलेपन के लिए मशहूर हैं. आप पर किसी तरह के समझौते का दबाव तो नहीं पड़ा?

मैं पैसे के लिए नहीं अच्छे काम के लिए फिल्में करती हूं. अपनी पसंद की फिल्में करती हूं. इसी वजह से फिल्म ‘जिद्दी’ के बाद दूसरी फिल्मों के बीच समय भी लिया.

मेरा मानना है कि हम लोग जो दिखाएंगे, वही लोग देखेंगे. ज्यादा गंदा दिखाने से कामयाबी नहीं मिलती. थोड़ीबहुत तड़कभड़क तो ठीक है, पर फूहड़ता ठीक नहीं.

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