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पचास वर्षों का हुआ लहासा मार्केट

संवाद 

पटना में ल्हासा मार्केट की शुरुआत 1970 में वीणा सिनेमा के सामने फुटपाथ से थी।उसके बाद महावीर मंदिर के सामने सरकारी बस पड़ाव से सटे खाली जगह पर पहली बार तिब्बती शरणार्थियों द्वारा ऊनी कपड़ों का सेल लहासा मार्केट के नाम से लगाया गया था यह मेला तब से प्रतिवर्ष जाड़े के समय तीन महीने के लिए लगता है। शुरुआती वर्षों में यह मेला प्रतिवर्ष 10 दिसंबर मानवाधिकार दिवस के दिन से एक महीने के लिए पटना जंक्शन के पास लगता था बाद में सरकारी बस स्टैंड हट जाने के बाद यह मेला गांधी मैदान में लगने लगा। जब वहां से भी प्रशासनिक कारणों से इन्हें हटाया गया तो यह मेला बुध मार्ग में अशोक सिनेमा हॉल से सके सतनारायण जी ट्रस्ट परिसर में शिफ्ट हो गया शहर ने विगत 50 वर्षों में अंगड़ाई ली शहर के तमाम चीजें बदल गई पर नहीं बदला तो लहासा मार्केट का क्रेज ठंड के मौसम में आने वाले तिब्बती शरणार्थियों के गर्म कपड़ों का यह बाजार पटना वासियों के लिए सालों भर इंतजार का सबब रहता है। दुकानदार बताते हैं पटना के लोगों का प्यार ही है कि प्रतिवर्ष वह पूरे देश से यहां चले आते हैं इस वर्ष यह ऊनी कपड़ों का मार्केट पटना हाई कोर्ट मजार के पास लगा है 200 के करीब दुकानें हैं जो तिब्बती शरणार्थियों के द्वारा लगाई गई पहले उन्हीं कपड़ों की खरीदारी करने वाले लोग मोल मलाई करते थे इस कारण से विगत 10 वर्षों से लहासा मार्केट में फिक्स रेट पर समाने बेची जाने लगी यहां आपको हर उम्र भर के लिए हर एक रेंज के ऊनी कपड़े जैकेट स्वेटर शॉल कंबल और तमाम चीज है जो ठंड में उपयोग में लाई जाती हैं। लहासा मार्केट में आने वाले दुकानदार सिर्फ ऊनी कपड़े ही नहीं भेजते हैं बल्कि अपने देश तिब्बत के आजादी की लड़ाई के लिए समर्थन भी जुटाते हैं। 50 वर्षों से इस लहासा मार्केट की एक और खासियत है की शुरुआत के वर्षों में जिसका जितना दुकान हुआ करता था आज भी उसी तरह में उसकी दुकान होती है जिनकी 3 दुकानें थी आज भी उनकी तीन दुकानें होती है जिनकी एक दुकानें होती थी उनकी एक ही दुकान होती है कई पीढ़ियों से तिब्बती शरणार्थी पटना आते हैं और पटना का स्टेशन से सटा गोरिया टोली का इलाका इनका रैन बसेरा होता है यहां के मकान मालिक इनके लिए महीने के फिक्स रेंट पर मकान है दे देते हैं यह तिब्बती शरणार्थी सपरिवार वहीं रहते हैं सुबह 9:00 बजे से रात के 10:00 बजे तक दुकानें खुलती है फिर वापस यह अपने गंतव्य चले जाते हैं। शरणार्थियों का कहना है कि भारत उनका अपने घर जैसा है जब पूरी दुनिया में किसी ने तिब्बतियों को शरण नहीं दी तब भारत ने ही उन्हें शरण दी यहां के मिट्टी का कर्ज भी यह उतारते हैं तिब्बत पर चीन के कब्जे के बाद से तिब्बतियों की भारी तादाद हिमाचल प्रदेश में आकर बस गई तिब्बत की निर्वासित सरकार का मुख्यालय और राजधानी हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में है।आसपास के इलाकों में इनकी तादाद सबसे ज्यादा है। तिब्बती मूल के लोगों को भारत में शिक्षा ग्रहण करने तथा अन्य सरकारी सुविधाएं प्राप्त करने का अधिकार है। लहासा मार्केट में आने वाले ऊनी कपड़े लेदर जैकेट्स अन्य गर्म कपड़े भारत के ही जालंधर लुधियाना और अन्य शहरों के बने होते हैं जो यहां तिब्बती शरणार्थी फिक्स रेट पर बेचते हैं कारोबार काफी बेहतर होता है और इसी तीन महीने की कमाई से पूरे साल इनका घर परिवार चलता है।इस बार 50 तिब्बती शरणार्थी परिवार ल्हासा मार्केट में आये है. इसमें कई तो तीसरी पीढ़ी के सदस्य हैं. ये धर्मशाला, देहरादून, मसूरी, दार्जलिंग और कर्नाटक से आये हैं. ये सभी हर साल जाड़े के मौसम में पटना आते हैं. ये लोग गोरियाटोली में किराये के मकान में रह कर लगभग तीन माह तक ऊनी कपड़ों का कारोबार करते हैं. करमा ने बताया कि तिब्बती शरणार्थियों के लिए महफूज जगह है. यहां हम लोग सुरक्षित महसूस करते हैं. इस मुहल्ले बड़े से युवा वर्ग तक सम्मान करते हैं. सांसद रामकृपाल यादव तो हमारे अभिभावक हैं. जब वे वार्ड पाषर्द तभी से उनका स्नेह मिल रहा है. पटना के अलावा मुजफ्फरपुर, बेगूसराय, गया, भागलपुर और दरभंगा सहित अन्य बड़े शहरों में भी यह मार्केट लगता है. मेले के व्यवस्थापक समाजसेवी मनोज कुमार सिंह ने कहा इस बार महागठबंधन सरकार के सहयोग से विषम परिस्थितियों में हाई कोर्ट मजार के पास शरणार्थियों के लिए यह मार्केट लग पाया है उन्होंने पटना वासियों से अपील की कि ऑनलाइन और मॉल संस्कृति की दौर में भी इन शरणार्थियों की मदद के लिए भारी से भारी तादाद में आकर लहासा मार्केट में खरीदारी करें. 

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