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कुढ़नी के कोख से निकली बिहार की नई सियासत

अनूप नारायण सिंह

बिहार में हाल के दिनों में तीन विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव हुए. इन तीनों सीटों के उपचुनाव को बिहार में हाल में बने महागठबंधन की स्वीकार्यता का लिटमस टेस्ट माना जा रहा था. इस लिहाज से देखें तो बिहार ने महागठबंधन को खारिज किया है, क्योंकि मोकामा की जीत किसी पार्टी की नहीं बल्कि एक व्यक्ति अनंत सिंह की जीत थी. सात दलों के महागठबंधन के बावजूद,अकेले भाजपा ने पहले गोपालगंज और फिर कुढ़नी में जीत दर्ज की. भाजपा की इस जीत ने उस राजनीतिक विश्लेषण पर ही मुहर लगाई है जो इस चुनाव को महागठबंधन की स्वीकार्यता या और अस्वीकार्यता के रूप में देख रहा था. फिर दूसरा सवाल यह भी है क्या बिहार में तीन उपचुनाव के परिणाम सिर्फ महागठबंधन के खिलाफ है या फिर आक्रोश नीतीश कुमार को लेकर भी है? क्योंकि इन तीन चुनाव में मोकामा में राजद प्रत्याशी अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी ने अपनी सीट बचा ली, गोपालगंज में भारतीय जनता पार्टी ने अपनी सीट बचा ली, लेकिन जिस कुढ़नी की सीट को अति विश्वास में नीतीश कुमार ने राजद से उसकी सिटिंग सीट मांग कर चुनाव लड़ा, वहां भी हार गए.वो भी तब,जबकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इससे पहले ना तो गोपालगंज में चुनाव प्रचार को गए और ना ही मोकामा में लेकिन कुढ़नी में नीतीश कुमार ने तेजस्वी और अपने मंत्रिमंडल के लगभग सभी मंत्रियों के साथ मिलकर अपने उम्मीदवार के लिए बड़ी रैली भी की. महागठबंधन के सभी सात दलों के बड़े नेता कुढ़नी में लगातार जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह के नेतृत्व में कैंप किए रहे.

गोपालगंज चुनाव परिणाम हो या फिर कुढ़नी अब यह स्पष्ट हो चुका है कि राजद और जदयू के वोट एक दूसरे को पूरी तरह से ट्रांसफर नहीं हो रहे हैं. कुढ़नी में ही उदाहरण के रूप में देखें तो मुस्लिम बहुल चैनपुर वाजिद पंचायत में जहां 90% वोटिंग होती रही है वही इस बार मात्र 60 फीसदी वोटिंग हुई.
जिस मुजफ्फरपुर जिले के बोचहां उपचुनाव में भाजपा की हार ने यह बताया कि भूमिहार भाजपा से नाराज हैं, उसी मुजफ्फरपुर जिले के कुढ़नी उपचुनाव ने यह भी बताया कि भूमिहार अभी भी भाजपा के परंपरागत वोट बैंक है.जबकि भूमिहार ब्राह्मण सामाजिक फ्रंट खुलकर मुकेश सहनी के भूमिहार उम्मीदवार नीलाभ कुमार के समर्थन में मैदान में था और मुकेश सहनी ने भी खूब माछ-भात के नारे लगाए, यानी कि भूमिहार और सहनी के एक होने के नारे लगे लेकिन सब वेअसर रहा.
गोपालगंज में भारतीय जनता पार्टी की जीत हुई तो यह कहा गया कि वहां वोटकटवा की वजह से
भाजपा जीत गई. साधु यादव की पत्नी ने यादव वोट बैंक और ओवैसी के उम्मीदवार ने मुसलमान वोट में सेंधमारी की यानी कुल मिलाकर राजद के एमवाई समीकरण में सेंध लगी तो भाजपा जीत गई. लिहाजा कुढ़नी में नीतीश कुमार ने भाजपा के परंपरागत भूमिहार वोट बैंक में सेंधमारी के लिए एक भूमिहार, नीलाभ कुमार को मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी का उम्मीदवार बना कर खड़ा कर दिया. यहां ओवैसी के उम्मीदवार मुर्तजा अंसारी भी चुनाव लड़ रहे थे लेकिन यह दोनों ही कुढ़नी में बेअसर रहे.VIP के भूमिहार उम्मीदवार को जो वोट मिले वो भूमिहार कम,मल्लाह ज्यादा हैं.
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या नीतीश कुमार के खिलाफ बिहार के इस आक्रोश को झेलने के लिए तेजस्वी यादव तैयार हैं?

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