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'तभी से कुछ राजनीतिक दल…', जाति गणना पर फिर तेजस्वी यादव का आया ये बड़ा बयान

संवाद 



जातीय गणना पर जारी राजनीति के बीच एक बार फिर बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने बड़ा वर्णन दिया है. फेसबुक पर बुधवार (2 अगस्त) को लंबा पोस्ट लिखा. इस दौरान इन्होंने बिना नाम लिए राजनीतिक दलों पर भी आक्रमण बोला. तेजस्वी यादव ने बोला कि बिहार के हर गरीब, वंचित और अच्छे भविष्य की चाहत रखने वाले व्यक्ति के लिए यह अत्यंत खुशी का विषय है कि पटना उच्च न्यायालय ने जाति आधारित सर्वेक्षण पर आगे बढ़ने के लिए बिहार सरकार को हरी झंडी दिखा दी है. इसे लेकर आम नागरिकों के चेहरों पर प्रसन्नता और संतोष स्पष्ट देखा जा सकता है. तेजस्वी यादव ने बोला कि जब से जातीय गणना करवाने के लिए आवाज उठाई जा रही थी, ऐसी गणना करवाने के लिए प्रयत्न हो रहे थे, तभी से कुछ राजनीतिक दल और जातिवादी लोग इसके खिलाफ दुष्प्रचार में लग गए थे. इन्होंने प्रचारित करना प्रारंभ कर दिया कि यह केवल कमजोर वर्गों के ही हित में है जबकि वास्तविकता इसके ठीक उलट यह है कि यह सभी वर्गों के सभी लोगों के हित में समान रूप से है.समझाते हुए तेजस्वी यादव ने बोला कि समाज एक शरीर की भांति होता है. 

एक अंग के पीड़ा में होने या कमजोर होने पर उसका असर पूरे शरीर पर पड़ता है.

 एक अंग के कमजोर होने पर सभी अंग धीरे धीरे कमजोर होने लगते हैं. उसी प्रकार समाज या देश के कुछ वर्गों के पीछे रह जाने से आगे निकल चुके वर्ग भी अपने पूरे सामर्थ्य और प्रतिभा के अनुकूल आगे नहीं बढ़ पाते हैं. इसका देश के विकास और सामाजिक सौहार्द पर इसका प्रतिकूल दुष्प्रभाव पड़ता है.आगे तेजस्वी यादव ने बोला कि कई लोगों ने जाति आधारित जनगणना के विरोध में यह भी बोला कि जाति के आंकड़े जुटाने की क्या जरूरत है? इससे तो समाज का विभाजन होगा. दरअसल भारत में प्रारंभ से ही जाति और वर्ण के आधार पर व्यवसायों और समाज में लोगों के महत्व का विभाजन और वर्गीकरण हुआ. इस प्रकार व्यक्ति विशेष की आर्थिक स्थिति पर उसकी जाति का असर पड़ा. इतना ही नहीं, कुछ व्यवसायों को श्रेष्ठ तो कुछ को तुच्छ भी बताया गया. इन वजहों से पीढ़ी दर पीढ़ी लोग एक ही व्यवसाय में सीमित रहे. इससे आपका जीविकोपार्जन और आर्थिक स्थिति इस बात पर निर्भर करने लगा कि अपना जन्म किस वर्ण में हुआ, ना कि आपकी इच्छा या कौशल पर.इसी वजह से पूरी जाति विशेष के लोगों की आर्थिक स्थिति भी कमोबेश एक सी ही रही. इसीलिए कुछ वर्ग एक साथ धीरे-धीरे पिछड़ते चले गए. अगर जाति के वजह से कुछ लोगों में आर्थिक और सामाजिक पिछड़ापन व असमानता आया है तो इस समस्या के कारणों का जुटान, उस पर अनुसंधान और इसका निदान भी जाति के वैज्ञानिक आंकड़ों के आधार पर ही किया जा सकता है. हर देश, सरकार, संगठन या संस्थाएं हर प्रकार के आंकड़े जुटाती है और उन आंकड़ों को आधार बनाकर आगे की प्रभावी योजनाएं बनाती है, फैसला लेती हैं. 

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