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सीएम नीतीश ने अपने तरकश के आखिरी 'तीर' से चली सोशल इंजीनियरिंग की चाल, अपनों और गैरों पर साधे निशाने!


संवाद 

अगले वर्ष संभावित लोकसभा चुनाव (lok Sabha Election 2024) के लिए एनडीए (NDA) और 'इंडिया' दोनों गठबंधन अपनी रणनीति के मुताबिक योजना बनाकर मतदाताओं को अपनी तरफ आकर्षित करने की कोशिश में जुट गए हैं. बीजेपी (BJP) ने जहां संसद का विशेष सत्र बुलाकर महिला आरक्षण विधेयक पास करवाने की चाल चली, वहीं बिहार में जातीय गणना (Bihar Caste Survey) कराकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने देश की राजनीति में नई लकीर खींच दी है. इसमें कोई शक नहीं कि नीतीश सामाजिक समीकरण के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं. जोड़-तोड़ और समीकरण को साधते हुए नीतीश कम सीट होने के बावजूद भी बिहार में बतौर मुख्यमंत्री 18 वर्ष से काबिज हैं. जातीय जनगणना को भी इसी रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है. बोला जा रहा है कि नीतीश ने अगले लोकसभा और 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए अपने तरकश से आखिरी तीर चला दी है. नीतीश ने पहले बीजेपी के विरोधी दलों को इकट्ठा किया और फिर जातीय जनगणना की रिपोर्ट जारी कर दी. इसमें कोई दो मत नहीं कि बिहार में होने वाले चुनाव में जाति बहुत बड़ा रोल प्ले करता है. 

बीजेपी महिला आरक्षण जैसे संवेदनशील मुद्दे और धर्म के मुद्दे को लेकर अपनी रणनीति साफ कर चुकी है.

 माना जा रहा है कि नीतीश ने चुनावी जनगणना के मास्टर स्ट्रोक से न केवल बीजेपी को बल्कि अपने सहयोगी दलों को भी एक सीमा में बांध कर रखने का प्रयास किया है. माना जाता है कि आरजेडी का वोट बैंक यादव-मुस्लिम समीकरण है ऐसे में नीतीश ने इस गणना के माध्यम मुस्लिम मतदाताओं और अत्यंत पिछड़े वर्ग (ईबीसी) को भी साधने की कोशिश की है.जाति सर्वेक्षण के अनुकूल, बिहार की आबादी में ईबीसी का प्रतिशत 36 है वहीं, यादवों की आबादी 14 प्रतिशत हैं. बिहार की राजनीति के जानकार मणिकांत ठाकुर बोलते हैं कि जातीय गणना विशुद्ध सियासी चाल है. उन्होंने साफ लहजे में बोला कि नीतीश कुमार इसके माध्यम राजनीति में अपनी कमजोर पड़ रही आभा को फिर से राष्ट्रीय स्तर पर चमकाने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने बोला कि नीतीश की यह चाल बीजेपी के हिंदू ध्रवीकरण को रोकना है. उन्होंने बोला कि नीतीश सियासी लाभ के लिए पहले भी जातियों को बांटते रहे हैं, एक बार फिर उन्होंने जातियों को वर्गों में बांटकर सियासी लाभ लेने की कोशिश की है.ठाकुर हालांकि यह भी बोलते हैं कि इस गणना की रिपोर्ट पर न केवल प्रश्न उठाए जा रहे हैं बल्कि इसके बाद जिसकी जितनी आबादी उसकी उतनी हिस्सेदारी को लेकर भी आवाज बुलंद हो रहे हैं. ऐसी स्थिति में अगर हिस्सेदारी की आवाज और तीव्र हुई तो बिहार में सत्तारूढ़ महागठबंधन को मुश्किल भी आ सकती है. आगे उन्होंने बोला कि मानते हैं कि बीजेपी सबका साथ और सबका विकास तथा राष्ट्रवाद के मुद्दे को हवा देकर भी इस जातीय समीकरण की काट खोज सकती है. बहरहाल, नीतीश कुमार ने बिहार में जातीय जनगणना की रिपोर्ट जारीकर लोकसभा चुनाव के पहले एक बड़ी चाल चल दी है, जिसका कितना फायदा होता है इसके लिए तो अभी प्रतिक्षा करना पड़ेगा.

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