बिहार की नई आरक्षण नीति लागू होगी?
या सिर्फ सियासत के प्रयोग के लिए इसे किया गया है. इसमें कितनी रुकावट आ सकती है यह भी जानना अनिवार्य है, क्योंकि आरक्षण का 50% से अधिक होने का प्रावधान नहीं है तो बिहार सरकार के सदन में पास होने से क्या यह लागू हो जाएगा. इस पर कानूनी विशेषज्ञ अरुण कुमार पांडे ने बोला कि बिहार सरकार ने इसे लागू किया है तो उसमें कोई बाधा नहीं आ सकती है. किसी भी राज्य सरकार का यह विशेष अधिकार है कि वह अपना कानून खुद बना सकता है और आरक्षण कानून बिहार सरकार ने सदन में बनाया है. दोनों सदनों से पास हो गया है. राज्यपाल के सिग्नेचर के बाद यह आरक्षण बिल लागू हो जाएगा. कानूनी विशेषज्ञ ने बोला कि इसमें केंद्र सरकार हस्तक्षेप नहीं कर सकती है क्योंकि यह सिर्फ बिहार के लिए है, लेकिन इस पर बाधा उस समय आ सकती है जब कोई व्यक्ति इस आरक्षण के विरुद्ध हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में जाएगा. क्योंकि कोर्ट में जाने के बाद कोर्ट इसकी मंजूरी कभी नहीं देगा. सुप्रीम कोर्ट 50% से अधिक आरक्षण की मंजूरी नहीं देता है. उन्होंने बताया कि ऐसा नया नहीं है बिहार के अलावे तमिलनाडु में भी 59 प्रतिशत आरक्षण है जिसे नौवीं सूची में लाया गया है. उन्होंने बताया कि विधानसभा के नौवीं सूची के तहत सुप्रीम कोर्ट भी इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता है. नौवीं सूची का प्रावधान 1952 में ही तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के वक्त में लाया गया था. हालांकि इस पर भी काफी मतभेद हुआ था, लेकिन अभी तक नौवीं सूची में संशोधन नहीं किया गया है. आगे अरुण कुमार पांडे ने बोला कि तमिलनाडु के अलावे महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और कई राज्यों में भी आरक्षण बढ़ाया गया है जो नौवीं सूची में नहीं डाला गया और मामला जब कोर्ट में गया तो वह समाप्त हो गया. उन्होंने बताया कि पूरे देश में आरक्षण बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार को कानून में संशोधन करके ही बढ़ाया जा सकता है जो नरेंद्र मोदी की सरकार में किया भी गया है. कानून में संशोधन करके 10 प्रतिशत आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को आरक्षण दिया गया है, लेकिन राज्यों में उसका अपना हक है.