एक जुलाई से तीन नए आपराधिक कानून लागू हो गए हैं। इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) की जगह भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), क्रिमिनल प्रोसिजर कोड (सीआरपीसी) की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और एविडेंस एक्ट की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम लागू हो गया है।
पुलिस की जांच प्रक्रिया और कोर्ट में ट्रायल में भी बदलाव आएगा। हत्या के लिए आईपीसी की धारा 302 की जगह अब 103 बीएनएस और दुष्कर्म में 376 की जगह 64 बीएनएस लगाई जाएगी। इस नए कानून को लेकर आमजन में काफी उत्सुकता है। इसके फायदे व नुकसान का आंकलन किया जा रहा है। इस नए कानून से लोगों को फायदा होगा। कानून व्यवस्था बिगड़ने की आशंका में पुलिस निर्देशों की पालना नहीं करने वाले को 24 घंटे तक पुलिस थाने में रख सकेगी।
झूठे मुकदमे दर्ज कराने वालों पर दो लाख रुपए का जुर्माना व दस साल तक की जेल का प्रावधान किया गया है। सबसे बड़ी बात है कि व्यक्ति अपने नजदीकी थाने में जाकर या ऑनलाइन रिपोर्ट दर्ज करा सकेगा। पुलिस उसे अपने इलाके की घटना न होना बताकर टरका नहीं सकेगी। महिला अपराधों के मामले में पुलिस को 60 दिन में अनुसंधान कर चालान पेश करना होगा। पहले इसकी लिमिट तय नहीं थी। किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने पर पुलिस को उसके परिवार को जानकारी देनी होगी।
नए कानून में पुलिस के पास रिमांड लेने का दायरा बढ़ा है। हत्या, डकैती, लूट जैसी संगीन मामलों में अब पुलिस 60 दिन में आरोपी का 15 दिन तक रिमांड ले सकती है। पहले अक्सर किसी मामले में आरोपी के गिरफ्तार होने पर रिमांड के बाद न्यायिक अभिरक्षा में भेजने पर कुछेक मामलों को छोड़कर वापस रिमांड पर नहीं लिया जा सकता था। अब पुलिस ऐसे आरोपियों को टुकड़ों में 60 दिन की अवधि में 15 दिन तक रिमांड पर लेकर पूछताछ कर सकेगी। केस में 90 दिन में क्या किया, पुलिस को इसकी जानकारी पीड़ित को देनी होगी। नए कानून से लोगों को फायदा होगा। पहले थाना क्षेत्र को लेकर पुलिस मुकदमा दर्ज नहीं करके संबंधित थाने में ही रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए कहती थी। अब व्यक्ति अपने किसी भी नजदीकी थाने में जाकर रिपोर्ट दर्ज करा सकेगा। दिव्यांग की रिपोर्ट पर पुलिस खुद पीड़ित के पास जांच करने जाएगी।
पोक्सो व दुष्कर्म में जिस थाने में रिपोर्ट दी गई है, वहां पीड़िता का मेडिकल करा सकेगी। संपत्ति संबंधी धोखाधड़ी के मामलों में जांच के बाद में ही मुकदमा दर्ज होगा। एफएसएल रिपोर्ट की अनिवार्यता होने से पुलिस जांच की गुणवत्ता बढ़ेगी। - जगमाल सिंह लोटासरा, सेवानिवृत्त एएसपी इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें टाइम लाइन तय है। पुलिस की जांच और ट्रायल कोर्ट में फैसले का समय निश्चित है जिससे आमजन को जल्दी न्याय मिलेगा। नए कानून में अब ऑनलाइन विटनेस हो सकता है। अब पीड़ित कहीं भी जीरो नंबर एफआईआर दर्ज करा सकेंगे।
पहले क्षेत्राधिकार के कारण पीड़ितों को अलग-अलग थानों के चक्कर काटने पड़ते थे। अब उन्हें परेशान नहीं होना पड़ेगा। तीन दिन में संबंधित थाने में जाकर एफआईआर पर साइन करना होगा। नए कानून में झूठे मुकदमे दर्ज कराने वालों के खिलाफ कड़ा प्रावधान किया है। सात साल तक की सजा वाले झूठे मुकदमे दर्ज कराने पर 2 लाख रुपए का जुर्माना व 5 साल की सजा तथा दस साल से अधिक सजा वाले मामले झूठे दर्ज कराने पर दो लाख से अधिक का जुर्माना व दस साल की सजा का प्रावधान है। कानून व्यवस्था बिगड़ने की आशंका में 24 घंटे तक पुलिस पकड़ कर थाने में रख सकेगी : नए कानून में पुलिस को अधिक अधिकार मिले हैं। किसी मामले में कानून व्यवस्था बिगड़ने, उत्पात या व्यवधान पहुंचाने की आशंका होने पर पुलिस किसी भी व्यक्ति को 24 घंटे तक थाने में रख सकेगी। उसको कार्यपालक मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करने की जरूरत नहीं रहेगी। यह भारतीय दंड संहिता की धारा 172 के तहत होगा। इसमें प्रावधान किया गया है कि ऐसा कोई व्यक्ति जो पुलिस के निर्देशों की पालना नहीं कर रहा है, उस व्यक्ति को पुलिस डिटेन करेगी।
24 घंटे तक थाने में रख सकती है। रोज नामचे में धारा 172 का उल्लेख करना होगा। शांतिभंग की धारा 151 की जगह अब धारा 170 रहेगी। 7 साल से अधिक की सजा वाले मामलों में फोरेंिसक जांच अनिवार्य की गई है। घर की तलाशी या जब्ती की कार्रवाई की वीडियोग्राफी करनी होगी। अनुसंधान अधिकारी को दुष्कर्म पीड़िता के घर जाकर परिजनों व रिश्तेदारों की मौजूदगी में बयान लेने होंगे।
नए कानून में डिजिटल दस्तावेज मान्य होंगे। गवाह, आरोपी व परिवादी वर्चुअल भी पेश हो सकेंगे। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 35(3) तीन साल तक सजा वाले मामले में 60 साल से अधिक आयु के व्यक्ति व दिव्यांग है तो डीएसपी की अनुमति से ही गिरफ्तार किया जा सकेगा। - हिमांशु ठोलिया, हाईकोर्ट एडवोकेट