श्रद्धा, आस्था, समर्पण, शक्ति और सेवा भाव से जुड़ा चार दिवसीय पर्व छठ पूजा मंगलवार से नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से सप्तमी की तिथि तक भगवान सूर्यदेव की अटल आस्था का पर्व छठ पूजा मनाया जाता है। नहाय खाय के साथ ही लोक आस्था का महापर्व छठ की शुरुआत हो जाती है। चार दिन तक चलने वाले इस आस्था के महापर्व को मन्नतों का पर्व भी कहा जाता है। इसके महत्व का इसी बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इसमें किसी गलती के लिए कोई जगह नहीं होती इसलिए शुद्धता और सफाई के साथ तन और मन से भी इस पर्व में जबरदस्त शुद्धता का ख्याल रखा जाता है।
34 साल बाद बन रहा है महासंयोग
छठ महापर्व नहाय-खाय से
मंगलवार 5 नवम्बर से शुरू हो गया है। पहले दिन मंगलवार की गणेश चतुर्थी है। पहले दिन सूर्य का रवियोग भी है। ऐसा महासंयोग 34 साल बाद बन रहा है। रवियोग में छठ की विधि विधान शुरू करने से सूर्य हर कठिन मनोकामना भी पूरी करते हैं। चाहे कुंडली में कितनी भी बुरी दशा चल रही हो, चाहे शनि-राहु कितना भी भारी क्यों ना हों, सूर्य के पूजन से सभी परेशानियों का नाश हो जाएगा। ऐसे महासंयोग में यदि सूर्य को अर्घ्य देने के साथ हवन किया जाए तो आयु बढ़ती है।
पौराणिक और लोक कथाएं
पहली कथा - छठ पर्व को लेकर कई लोक कथाएं प्रचलित हैं। इनमें एक यह है कि लंका पर विजय के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन भगवान राम और सीता ने उपवास कर सूर्यदेव की आराधना की थी। सप्तमी को सूर्यादय के समय पुन: अनुष्ठान कर सूर्यदेव का आशीर्वाद लिया था।
दूसरी कथा - सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की थी। कर्ण प्रतिदिन घंटों पानी में खड़े होकर सूर्य भगवान को अर्घ्य देते थे। आज भी छठ में अर्घ्य दिया जाता है। इनके अलावा भी काफी कथाएं इस पर्व के संबंध में प्रचलित हैं।