मिथिला हिन्दी न्यूज :- मिथिलांचल अपनी संस्कृति और परंपराओं के लिए जाना जाता है। शादी के बाद के 12 घरो से नवविवाहिताओं को खायक दिया जाता है । आसपास के घर से नव वधू के लिए कोई विशेष दिन पर विभिन्न प्रकार के भोजन और उपहार भेजा जाता हैं। मिथिला परंपरा में इसे खायक की संज्ञा दी गई है। हाईटेक युग में वैवाहिक रिश्तों का लालित्य बढ़ाने वाली यह मिथिला प्रथा अब गांव देहातों के कुछ ही परिवारों तक सिमट कर रह गई है।खायक के बिना शादी में बहू की विदाई नहीं कराई जाती थी। जवानी की दहलीज में पांव रख रही नव वधू को ससुराल से मधुर रिश्तों की सीख देने के लिए खायक के लिए तरह-तरह की कपड़ों के साथ ही खाने को विभिन्न प्रकार के पकवान, मिठाइयां व खेलने के लिए आकर्षक खिलौने भेजते थे। वधू पक्ष के लोग भी पूरी शिद्दत के साथ खायक के रूप में यह सामान लेकर आने वाले बढ़चढ़कर खातिरदारी करते थे। मेहमानवाजी का यह दौर कई बार हफ्ते भर चलता रहता था। रिश्तों में लालित्य घोलने वाली यह अनूठी परंपरा मिथिलांचल में प्रचलित थी। खास बात है कि यह रस्म व्यक्तिगत न होकर सामाजिक होती थी। जिसमें खायक भेजने से पहले वर पक्ष अपने पड़ोसियों को बुलाकर उन्हें सहभागी बनाता था। खायक पहुंचने पर जहां नवविवाहिताओं में खुशी का माहौल छा जाता था वहीं कुछ लोगों का मानना है कि त्रेता युग में खायक की शुरुआत हो गई थी। खायक करने का मुख्य उद्देश्य रिश्तों को प्रगाढ़ बनाने के साथ ही वर वधू पक्ष को सम्मान की नजर से देखना था। लेकिन बदलते दौर और महंगाई ने रिश्तों की परंपरा बढ़ाने की इस परंपरा को ओझल कर दिया है। अब यह गांव देहातों के चंद परिवारों तक ही सिमट कर रह गई है।
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