रोहित कुमार सोनू
आज के डिजिटल युग में मोबाइल सेवा जीवन की अनिवार्य आवश्यकता बन चुकी है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जब आप किसी टेलीकॉम कंपनी का "मंथली रिचार्ज" कराते हैं, तो वो महीना असल में 28 दिन का होता है? यानी एक कैलेंडर महीने से कम।
भारत की प्रमुख टेलीकॉम कंपनियाँ जैसे जिओ, एयरटेल, वोडाफोन आइडिया आदि अपने अधिकांश प्रीपेड प्लान्स को 28 दिनों की वैधता के साथ पेश करती हैं। इसका मतलब है कि उपभोक्ता को साल में 12 नहीं बल्कि 13 बार रिचार्ज कराना पड़ता है।
उपभोक्ताओं की जेब पर सीधा असर
अगर ₹250 का एक रिचार्ज प्लान 28 दिन की वैधता का है, तो साल भर में कुल 13 रिचार्ज करने पर खर्च ₹3250 हो जाएगा। वहीं यदि यही प्लान 30 दिन का होता तो खर्च ₹3000 ही होता। यानी उपभोक्ता हर साल ₹250 अतिरिक्त दे रहा है – सिर्फ इसलिए क्योंकि टेलीकॉम कंपनियाँ "महीने" को 28 दिन का मान रही हैं।
कंपनियों का तर्क
टेलीकॉम कंपनियों का कहना है कि 28 दिन का प्लान "चार हफ्ते" के हिसाब से बनाया जाता है, जिससे प्लान की कीमत कम रखी जा सके। लेकिन असल में इससे सालाना बिल में बढ़ोतरी होती है और उपभोक्ताओं को भ्रमित भी किया जाता है।
क्या कहता है नियम?
भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) ने इस पर चिंता तो जताई है लेकिन अब तक कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं दिए गए हैं कि न्यूनतम वैधता 30 दिन होनी चाहिए। उपभोक्ता संगठन लगातार इस विषय को उठा रहे हैं।
समाधान क्या है?
उपभोक्ताओं को चाहिए कि वे वैधता की अवधि देखकर ही रिचार्ज प्लान चुनें।
30 दिन या 31 दिन वाले प्लान्स पर भी ध्यान दें, भले ही उनकी कीमत थोड़ी अधिक हो।
सरकार और TRAI को चाहिए कि सभी "मंथली प्लान्स" की वैधता कम से कम 30 दिन करने का आदेश जारी करें।
28 दिन का महीना टेलीकॉम कंपनियों के लिए फायदे का सौदा हो सकता है, लेकिन आम उपभोक्ता के लिए यह अतिरिक्त बोझ बनता जा रहा है।
टेलीकॉम सेवाओं में पारदर्शिता और ग्राहकों के हित की रक्षा के लिए यह मुद्दा अब नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
ग्राहकों की सच्ची आवाज़ – मिथिला हिन्दी न्यूज