संवाद
पटना/सीतामढ़ी – सावन बीत गया, भादो की आहट है लेकिन आसमान अब तक खाली है। अगस्त की दस्तक के बावजूद अब तक बिहार के ज़्यादातर जिलों में न के बराबर बारिश हुई है। खेत सूखे हैं, नल सूखे हैं, नदी-तालाब पाट चुके हैं और लोगों की प्यास अब आक्रोश में बदल रही है।
ग्रामीण इलाकों में स्थिति विकराल होती जा रही है। लोग सुबह से बाल्टी लेकर पानी की तलाश में निकल जाते हैं और दोपहर तक भी लौटते नहीं। शहरी क्षेत्रों में भी जलापूर्ति ठप है या बेहद सीमित।
सीतामढ़ी, मधुबनी, दरभंगा, सुपौल, पूर्णिया और सहरसा जैसे ज़िलों में भूजल स्तर इतना गिर चुका है कि हैंडपंप भी जवाब दे चुके हैं। वहीं नगर परिषद और पंचायत की ओर से वैकल्पिक व्यवस्था भी नाकाफी साबित हो रही है।
हर तबका परेशान – आम हो या खास
यह संकट केवल गरीब तबके तक सीमित नहीं है। सरकारी दफ्तरों, अस्पतालों, स्कूलों और यहां तक कि उच्च अधिकारियों के आवासों में भी पानी की किल्लत है। पटना में कई इलाकों में टैंकर से पानी की आपूर्ति हो रही है।
वर्षा की यह विफलता केवल पेयजल की समस्या नहीं है, बल्कि कृषि और बिजली उत्पादन पर भी इसका व्यापक असर पड़ने की आशंका है। धान की बुआई अधर में है और किसानों के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ झलक रही हैं।
सरकार की चुप्पी सवालों के घेरे में
सरकार की ओर से अब तक कोई विशेष राहत योजना या आपातकालीन जल प्रबंधन योजना सामने नहीं आई है। विपक्ष सरकार को घेर रहा है, तो आम जनता सोशल मीडिया पर अपने दर्द को साझा कर रही है।
जलवायु परिवर्तन, पर्यावरणीय असंतुलन और प्रशासनिक लापरवाही – इन सभी ने मिलकर बिहार को प्यासा बना दिया है। सवाल यह नहीं कि बारिश कब आएगी, सवाल यह है कि क्या तब तक हम इंतज़ार कर पाएंगे?
पानी और जीवन की इस जंग में, हर आवाज़ बनें ताकत। पढ़ते रहिए —
✍️ संपादक: रोहित कुमार सोनू | स्रोत: मिथिला हिन्दी न्यूज