15 अगस्त पर जलेबी और बूंदी की मीठी परंपरा

रोहित कुमार सोनू 

स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा फहराने और देशभक्ति गीतों के साथ एक और चीज़ हर साल हमारे दिल और स्वाद में जगह बना लेती है — गर्मागर्म जलेबी और मीठी बूंदी

📜 परंपरा का इतिहास

  • आज़ादी के शुरुआती वर्षों में, राष्ट्रीय पर्वों पर गांव-शहर में लोग एकजुट होकर मिठाई बांटते थे।
  • जलेबी और बूंदी इसलिए चुनी गईं क्योंकि ये आसानी से बड़ी मात्रा में बन सकती थीं, लंबे समय तक ताज़ा रहती थीं और सबको पसंद आती थीं।
  • स्कूलों और सरकारी कार्यालयों में तिरंगा फहराने के बाद मिठाई बांटना एक एकता और खुशी का प्रतीक बन गया।

🍯 जलेबी

  • मैदे के घोल को घुमावदार आकार में तलकर चाशनी में डुबोया जाता है।
  • 15 अगस्त की सुबह-सुबह बनाई गई गरमा-गरम जलेबी खाने का मज़ा ही अलग होता है।

🍊 बूंदी

  • बेसन के घोल को छेददार करछी से गर्म तेल में डालकर छोटी-छोटी गोलियां बनाई जाती हैं।
  • चाशनी में डुबोकर इसे बूंदी लड्डू भी बनाया जाता है।
  • स्कूलों में अक्सर मीठी बूंदी बच्चों में बांटी जाती है।

🎉 आज भी कायम है मिठास

आज भी 15 अगस्त और 26 जनवरी पर देश के कई हिस्सों में तिरंगा फहराने के बाद जलेबी और बूंदी बांटने की परंपरा निभाई जाती है।
यह सिर्फ़ मिठाई नहीं, बल्कि एक मीठी याद और एकता का स्वाद है जो हमें आज़ादी के जश्न के साथ जोड़ता है।

देश और संस्कृति की ऐसी दिलचस्प बातें पढ़ते रहिए मिथिला हिन्दी न्यूज

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