पुरी, खीर और पिरूकिया के बिना अधूरा है चौरचन

संवाद 

मिथिला की परंपराओं में चौरचन पर्व का अपना विशेष महत्व है। यह सिर्फ पूजा और व्रत का पर्व नहीं, बल्कि स्वाद और संस्कृति का संगम भी है। इस दिन बनने वाले पारंपरिक व्यंजन पुरी, खीर और पिरूकिया को मिथिला के लोग "चौरचन का रस्स" कहते हैं।

पुरी: परंपरा का स्वाद

गेहूँ के आटे से बनी गरमा-गरम पुरी, दही और मठा के साथ खाने में अद्भुत स्वाद देती है। पूजा में चढ़ाए गए प्रसाद की थाली पुरी के बिना अधूरी मानी जाती है।

खीर: मीठेपन का प्रतीक

दूध, चावल और शक्कर या गुड़ से बनी खीर चौरचन की शोभा बढ़ाती है। इसे चंद्रमा को अर्पित करना शुभ माना जाता है। खीर न केवल स्वादिष्ट होती है बल्कि यह परिवार के बीच प्रेम और मिठास का प्रतीक भी है।

पिरूकिया: पर्व की शान

सूजी या खोवा भरकर बनाई जाने वाली पिरूकिया चौरचन के पर्व की शान है। खासकर बच्चे और महिलाएँ इस पकवान का इंतजार पूरे साल करती हैं। पूजा के बाद जब परिवार एक साथ बैठकर पिरूकिया खाता है तो उसका आनंद ही कुछ और होता है।

मिथिला की सांस्कृतिक पहचान

चौरचन सिर्फ पूजा का दिन नहीं बल्कि यह मिथिला की जीवन शैली और सांस्कृतिक पहचान को दर्शाता है। स्वाद और परंपरा का यह संगम हर किसी के दिल में अपनी छाप छोड़ देता है। यही कारण है कि लोग कहते हैं –

“पुरी-खीर-पिरूकिया का जवाब नहीं,
मिथिला रस्स है चौरचन।”
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✍️ संपादक – रोहित कुमार सोनू



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