संवाद
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले राज्य की राजनीति में जातीय समीकरण एक बार फिर तेज़ हो गया है। पूर्व केंद्रीय मंत्री और आरा के बीजेपी सांसद राजकुमार सिंह (आरके सिंह) ने क्षत्रिय समाज को एकजुट होने का आह्वान किया है।
23 सितंबर को शारदीय नवरात्र के अवसर पर क्षत्रिय कल्याण संगठन के नए कार्यालय का उद्घाटन करते हुए उन्होंने कहा कि यदि क्षत्रिय समाज बंटा रहा तो आने वाले वर्षों में उसकी राजनीतिक हैसियत खत्म हो जाएगी।
आरके सिंह ने साफ कहा:
“हमारा समाज कई टुकड़ों में बंटा हुआ है, इसलिए किसी भी राजनीतिक दल में हमारी कीमत नहीं है। यदि हम एकजुट हों, तो कोई पार्टी हमारी अनदेखी नहीं कर सकेगी।”
उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि आगामी चुनाव में क्षत्रिय समाज किसी एक दल से बंधा नहीं रहेगा। समाज उसी पार्टी का समर्थन करेगा, जो क्षत्रियों को सबसे अधिक टिकट और सम्मान देगी। चाहे वह महागठबंधन हो या एनडीए।
क्यों अहम है यह बयान?
- बिहार की राजनीति में क्षत्रिय वोट बैंक कई सीटों पर निर्णायक माना जाता है।
- बीजेपी सांसद होने के बावजूद आरके सिंह का “दल से ऊपर समाज” वाला बयान राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बन गया है।
- यह बयान एनडीए और महागठबंधन दोनों के लिए संकेत है कि उन्हें क्षत्रिय समाज को साधने के लिए टिकट बंटवारे में गंभीर होना होगा।
आगे की सियासी तस्वीर
- आरके सिंह के इस बयान से यह साफ हो गया है कि जातीय समीकरण 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में अहम भूमिका निभाने वाले हैं।
- अगर क्षत्रिय समाज संगठित होता है, तो यह कई विधानसभा क्षेत्रों में सत्ता का संतुलन बदल सकता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह संदेश एनडीए के भीतर भी हलचल पैदा करेगा, क्योंकि एक केंद्रीय मंत्री और सांसद का ऐसा बयान चुनावी रणनीति पर असर डाल सकता है।
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