इस बार छठ पूजा पर घर आ रहे हैं न?

रोहित कुमार सोनू 

छठ पूजा सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि भावनाओं और घर-परिवार से जुड़ेपन का उत्सव है। साल भर कामकाज, पढ़ाई या नौकरी के कारण लोग कितनी भी दूर क्यों न हों, छठ आते ही दिल में सिर्फ एक ही सवाल गूंजता है – “इस बार छठ पूजा पर घर आ रहे हैं न?”

🌅 घाट की ओर खींच लाती है ममता

गाँव की गलियों से लेकर गंगाजल से भरे घाट तक, हर जगह अपनी मिट्टी की खुशबू और माँ की पुकार होती है। छठी मैया की पूजा का समय नजदीक आते ही दूर बैठे बेटे-बेटियों को भी लगता है कि बस टिकट मिल जाए और घर पहुंच जाएँ।

👩‍👩‍👦 माँ-बाबूजी की आस

छठ के अवसर पर माँ अपने हाथों से प्रसाद बनाने का सपना संजोए रहती हैं और बाबूजी हर दिन फोन पर पूछते हैं – “बेटा, कब आ रहे हो? छठ का अर्घ्य तो साथ देना ही होगा।” यह स्नेह और प्रतीक्षा ही है जो छठ पूजा को और खास बना देती है।

🍲 ठेकुआ और घर का स्वाद

घर के आंगन में बने ठेकुआ, कसार, और दुध-चावल का स्वाद वह है जो बाहर रहकर कभी नहीं मिल सकता। परिजनों के साथ बैठकर छठी मैया के गीत गाना और घाट पर दीपदान करना जीवनभर की यादों में बस जाता है।

🌸 भावनाओं का मेला

छठ पूजा में घर लौटना सिर्फ पूजा का हिस्सा नहीं, बल्कि अपने संस्कार, संस्कृति और परिवार से जुड़ने का पल है। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि चाहे कितनी भी दूर चले जाएं, अपनी जड़ों से जुड़ाव कभी टूटता नहीं।

👉 इसलिए इस बार छठ पूजा पर जब घर लौटेंगे, तो माँ-बाबूजी की आंखों की चमक और पूरे परिवार की मुस्कान सबसे बड़ा प्रसाद होगी।

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