गठबंधनों में झोल ही झोल




बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है. अक्टूबर महीनें की पहले सप्ताह में चुनाव की तारीखों का एलान हो जाएगा और उसके बाद बिहार का सियासी माहौल और भी गरमाने लगेगा. इस बार का बिहार विधान सभा चुनाव राष्ट्रीय स्तर पर भी अहम माना जा रहा है, क्योंकि इसके नतीजे 2029 में होने वाली चुनाव की राजनीति की दिशा तय कर सकते हैं. भारतीय जनता पार्टी ने चुनावी रणभूमि में उतरने से पहले अपनी रणनीति को धार देने की कवायद तेज कर दी है. पार्टी ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को बिहार चुनाव का प्रभारी नियुक्त किया है. साथ ही, उत्तरप्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और केंद्रीय मंत्री सीआर पाटिल को सह-प्रभारी बनाया गया है.

भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह ने एक आधिकारिक पत्र जारी कर इन नियुक्तियों की घोषणा की. भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने धर्मेंद्र प्रधान को चुनाव प्रभारी और केशव प्रसाद मौर्य तथा सीआर पाटिल को सह-प्रभारी नियुक्त किया है. ये नियुक्तियां तत्काल प्रभाव से लागू हो चुकी हैं. भाजपा ने बिहार के साथ-साथ पश्चिम बंगाल पर भी नज़रें गड़ा रखी हैं. साल 2026 में होने वाले पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के लिए केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव को प्रभारी बनाया गया है, जबकि पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब को सह-प्रभारी की जिम्मेदारी सौंपी गई है. इससे साफ स्पष्ट है कि भाजपा एक साथ कई मोर्चों पर तैयारी कर रही है.

बिहार में चुनावी मुकाबला इस बार भी एनडीए बनाम महागठबंधन के बीच होगा. एनडीए जिसमें भाजपा और जदयू एक साथ हैं जिसमें उन्हें हम, लोजपा (आर), रालोमो जैसे दलों का भी समर्थन है. वहीं महागठबंधन जिसमें राजद, कांग्रेस, वीआईपी और वाम दलों की साझेदारी है. इसमें राजद सबसे बड़ी पार्टी है. नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राजद ने पिछले विधानसभा चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन किया था. वहीं इस बार राहुल-तेजस्वी की जोड़ी बिहार में वोट चोरी को अपना मुद्दा बनाकर भाजपा और चुनाव आयोग को घेरने में लगे हुए हैं.

जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की भूमिका इस चुनाव में बेहद अहम है. उनकी छवि और राजनीतिक चालें भाजपा के लिए चुनौती और अवसर दोनों हैं. दूसरी तरफ, तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राजद युवाओं और बेरोजगारी के मुद्दे को भुनाने की कोशिश में है. कांग्रेस भी खुद को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है. बिहार में राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा हो या महागठबंधन में टिकट बंटवारे की बात, कांग्रेस पूरी मजबूती के साथ अपनी बातों को रख रही है. अब तो कांग्रेस का भरोसा तेजस्वी यादव से उठने लगा है और उसने स्पष्ट कर दिया है कि बिहार में वह पूरे चुनावी कैंपेन को खुद लीड करेगी. ऐसे में बिहार की सियासत में यह सवाल उठने लगा है कि महागठबंधन में बड़े भाई की भूमिका किसकी होगी?

धर्मेंद्र प्रधान को चुनाव प्रबंधन और संगठन कौशल के लिए जाना जाता है. वे ओडिशा से आते हैं और भाजपा की जीत दिलाने में उनका रिकॉर्ड अच्छा रहा है. उत्तरप्रदेश 2022 विधानसभा चुनाव में चुनाव प्रभारी के रूप में भाजपा को 255 सीटें दिलाकर पूर्ण बहुमत दिलाया था. ओडिशा 2024 विधानसभा चुनाव में भाजपा को पहली बार पूर्ण बहुमत वाली सरकार दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी. हरियाणा में भाजपा को लगातार तीसरी बार सत्ता में लाने वाले मास्टरमाइंड रहे हैं. इसी वजह से उन्हें बिहार की जिम्मेदारी सौंपना भाजपा की रणनीतिक चाल मानी जा रही है. बिहार चुनाव 2025 का मैदान अब और दिलचस्प हो गया है. भाजपा ने धर्मेंद्र प्रधान जैसे रणनीतिकार को सामने लाकर बड़ा दांव खेला है. सवाल यह है कि क्या उनका अनुभव और रणनीति बिहार में भी पार्टी को जीत दिला पाएगी या महागठबंधन इस बार भाजपा को कड़ी टक्कर देकर सत्ता में वापसी करेगा. 

भाजपा की कोशिश होगी कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और केंद्र की योजनाओं के जरिए जनता तक पहुंचे. वहीं, विपक्ष बेरोजगारी, महंगाई और जातीय समीकरणों के सहारे भाजपा को चुनौती देगा. नीतीश कुमार की पलटीमार राजनीति भी इस चुनाव का बड़ा मुद्दा है. विपक्ष इसे हथियार बनाएगा, जबकि एनडीए इसे "स्थिर सरकार" के वादे से काउंटर करेगा.

दरअसल, आगामी बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर महागठबंधन में सियासी समीकरण तेजी से बदल रहे हैं. कांग्रेस ने इस बार गठबंधन में बड़ी भूमिका निभाने का संकेत देते हुए कहा है कि वह पूरे चुनाव प्रचार अभियान की कमान संभालेगी और अपने मुद्दों को महागठबंधन के साझा घोषणापत्र में शामिल कराएगी. कांग्रेस महासचिव नासिर हुसैन ने पटना में प्रेस वार्ता के दौरान स्पष्ट किया कि कांग्रेस सत्ता में आने पर अपने वादों को पूरा करेगी. उन्होंने अति पिछड़ा वर्ग के आरक्षण को बढ़ाने की पार्टी की प्रतिबद्धता को दोहराते हुए कहा कि यह कर्नाटक और तेलंगाना जैसे कांग्रेस शासित राज्यों में लागू किया जा चुका है और बिहार में भी इसे लागू करवाया जाएगा. नासिर हुसैन के इस बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज हो गई है. इसे राष्ट्रीय जनता दल और तेजस्वी यादव के लिए एक साफ संदेश माना जा रहा है कि कांग्रेस इस बार गठबंधन में 'छोटे भाई' की भूमिका में नहीं रहना चाहती. तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करने के सवाल पर कांग्रेस अब तक स्पष्ट रुख नहीं अपना पाई है.

कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी हों या बिहार कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावरु लगातार इस सवाल को टालते रहे हैं कि महागठबंधन का सीएम फेस कौन होगा? दोनों नेताओं ने कभी भी खुलकर नहीं कहा कि तेजस्वी ही महागठबंधन के सीएम फेस होंगे. अल्लावरु ने हाल ही में कहा था कि फिलहाल कांग्रेस का मुख्य मुद्दा मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बल्कि वोटों की चोरी को रोकना है. हालांकि राजद और वीआईपी तेजस्वी यादव को महागठबंधन का सीएम फेस मानकर ही अपनी रणनीति बना रहे हैं. वहीं कांग्रेस ने तेजस्वी को सीटों की सूची सौंप दी है और संकेत दिया है कि यदि सीटों के बंटवारे में देरी हुई तो पार्टी अपने दम पर 30 सीटों पर प्रचार शुरू कर देगी. बता दें कि बिहार में अगले महीने विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा संभावित है, ऐसे में महागठबंधन के भीतर सीएम चेहरे और सीट बंटवारे को लेकर मतभेद खुलकर सामने आते दिख रहे हैं. फिलहाल सीट बंटवारे को लेकर एनडीए में भी महागठबंधन जैसा हाल कायम है.

एनडीए और महागठबंधन में छोटे दल सीट बंटवारे में बड़ा पेच फंसा रहे हैं. एनडीए में लोजपा (आर) और हम सीटों को लेकर सबसे अधिक जिच कर रहे. लोजपा (आर) को 40 से अधिक सीटें चाहिए तो हम को 15 सीटों से कम मंजूर नहीं है. वहीं, एनडीए दोनों दलों को इसका आधा देने पर विचार कर रही है. चिराग और मांझी का दल जहां टिकट हिस्सेदारी को लेकर मुखर है वहीं रालोमो अध्यक्ष सांसद उपेंद्र कुशवाहा चुप हैं, मगर उनकी नजर भी आठ से दस सीटों पर लगी है. दरअसल, एनडीए में टिकट बंटवारे को लेकर अभी आधिकारिक रूप से सहयोगी दलों के बीच चर्चा नहीं हुई है, मगर दलों को इशारों में उनकी मोटा-मोटी हिस्सेदारी बता दी गई है.
         
भाजपा-जदयू दोनों इस बार एक समान सीटों पर लड़ेंगी. यह सीटें 101 के करीब हो सकती हैं. ऐसे में तीन दलों लोजपा (आर), हम और रालोमो के लिए अधिकतम गुंजाइश 41-45 सीटों के बीच ही बन रही है. इसमें चिराग पासवान को लगभग आधी हिस्सेदारी मिलने की चर्चा है. इस तरह उनके खाते में 20-23 सीटें आ सकती हैं. हम को 10-12, जबकि उपेंद्र कुशवाहा के दल रालोमो को आठ-दस के आसपास सीटें दी जा सकती है. केन्द्रीय मंत्री चिराग पासवान की पार्टी लगातार बयानबाजी कर इन्हीं 41-45 सीटों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की तैयारी कर रही है. इससे जीतन राम मांझी की धुकधुकी बढ़ गई है. लोजपा के प्रेशर पॉलिटिक्स से अपनी हिस्सेदारी बचाने के लिए ही मांझी की तरफ से न्यूनतम 15 सीटें, नहीं तो 100 सीटों पर लड़ने वाला बयान दिया गया है. इस बाबत हम के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ संतोष कुमार सुमन कहते हैं कि हमें राज्यस्तरीय दल के लिए कम से कम सात-आठ विधायक चाहिए. ऐसे में सम्मानजक सीटों की उम्मीद एनडीए से है. उम्मीद है एक सप्ताह में इसपर अंतिम निर्णय हो जाएगा.

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