संवाद
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब भी बिहार जाते हैं, उनके कंधे पर सजा हुआ लाल-सफेद चेक वाला पारंपरिक बिहारी गमछा तुरंत लोगों का ध्यान खींच लेता है। हाल ही में एक रैली के दौरान PM मोदी ने इसी गमछे से “गरदा उड़ाया”, जिसके बाद यह गमछा फिर चर्चा का विषय बन गया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह गमछा आखिर बिहार से इतना जुड़ा क्यों है और इसकी शुरुआत कहाँ से हुई? आइए जानें इसका पूरा इतिहास और सांस्कृतिक महत्व।
बिहार का गौरव: क्या है यह पारंपरिक बिहारी गमछा?
लाल और सफेद रंगों के खास चेक पैटर्न वाला यह गमछा सिर्फ शरीर पोंछने या धूप से बचने का कपड़ा नहीं है, बल्कि यह बिहार की सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान है।
गांव-देहात से लेकर शहरों तक, यह गमछा मेहनतकश लोगों से जोड़कर देखा जाता है। यही वजह है कि इसे “जनता का गमछा” भी कहा जाता है।
कहां से हुई इसकी उत्पत्ति?
इस गमछे की जड़ें बिहार के मिथिला और तिरहुत क्षेत्र में मानी जाती हैं। इतिहासकारों के अनुसार:
✔ मिथिलांचल से शुरुआत
सीतामढ़ी, मधुबनी, दरभंगा और मुज़फ्फरपुर जैसे जिलों में सदियों पहले बुनकरों ने इस गमछे की पारंपरिक बुनाई शुरू की थी।
यहां के हाथकरघा उद्योग ने इसे एक पहचान दी और कालांतर में यह पूरे बिहार में फैल गया।
✔ करघा बुनाई की पुरानी परंपरा
मिथिला की बुनकर बिरादरी — खासकर जुलाहा समुदाय — कपास के धागों से हाथकरघे पर यह गमछा तैयार करती थी।
लाल-सफेद चेक पैटर्न और किनारों पर हल्की झीनी कढ़ाई इसकी खासियत है।
बिहार से इतना गहरा लगाव क्यों?
1. मेहनतकश का प्रतीक
यह गमछा किसान, मजदूर, रिक्शा चालक और मछुआरों की दिनचर्या का हिस्सा है।
गांवों में इसे सम्मान और पहचान दोनों के रूप में माना जाता है।
2. सांस्कृतिक रंग
छठ पूजा, सामा-चकेबा, मिथिला पेंटिंग और ग्रामीण आयोजनों में यह गमछा पारंपरिक पोशाक का हिस्सा बन गया है।
इसके रंग और पैटर्न मिथिला संस्कृति की सादगी व परंपरा झलकाते हैं।
3. राजनीतिक पहचान
राजनीति में भी इस गमछे का इस्तेमाल बिहार की जनता से जुड़ाव का प्रतीक बन चुका है।
लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार और बिहार के कई नेता इसे मंचों पर पहनते रहे हैं।
4. PM मोदी का विशेष लगाव
PM मोदी जब भी बिहार आते हैं, वे इसी पारंपरिक लाल-सफेद गमछे को गले में धारण करते हैं।
हाल ही में जब उन्होंने इसे घुमाकर “गरदा उड़ाई”, तो यह गमछा फिर सुर्खियों में आ गया।
लोगों ने कहा—यह PM के बिहार के प्रति सम्मान और भावनात्मक जुड़ाव को दर्शाता है।
कैसे बनता है बिहारी गमछा?
- मुलायम कॉटन धागों से
- हाथकरघा और पावरलूम दोनों पर
- पारंपरिक चेक पैटर्न
- हल्का वजन और ज्यादा सोखने वाला
- गर्मी और मेहनत भरे कामों में बेहद उपयोगी
बिहार की जलवायु और ग्रामीण जीवनशैली के हिसाब से यह गमछा बिल्कुल उपयुक्त है।
GI टैग की मांग भी तेज
बिहार के स्थानीय करघा उद्योग से जुड़े बुनकर लगातार मांग कर रहे हैं कि इस पारंपरिक बिहारी गमछा को GI टैग दिया जाए, ताकि इसकी पहचान और भी मजबूत हो सके और बुनकरों को लाभ मिले।
PM मोदी द्वारा पहने जाने के बाद यह गमछा भले ही राष्ट्रीय चर्चा में आया हो, लेकिन इस गमछे का असली इतिहास सदियों पुराना है।
यह सिर्फ कपड़ा नहीं, बल्कि बिहार की मिट्टी, मेहनत, संस्कृति और लोगों की भावनाओं का प्रतीक है।
आज भी मिथिला और तिरहुत के बाजारों से लेकर गांवों की पगडंडियों तक यह गमछा अपनी परंपरा को गर्व से आगे बढ़ा रहा है।
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