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होलिका दहन 17 मार्च तथा होलिकोत्सव 19 मार्च को मनाया जाएगा

प्रिंस कुमार 

मिथिला हिन्दी न्यूज मोतिहारी - सामाजिक व धार्मिक विद्वान ज्योतिषाचार्य ने बताया कि हिंदू धर्म में होली का विशेष महत्व है,खुशियों और रंगों का यह त्योहार फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है.फाल्गुन माह की पूर्णिमा के दिन होलिका दहन और उसके दूसरे दिन होली खेलने का उत्सव मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा के दिन स्नान-दान कर उपवास रखने से मनुष्य के दु:खों का नाश होता है और उस पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा होती है। दिनांक 17 मार्च दिन बृहस्पतिवार को होलिका दहन भद्रा समाप्ति के पश्चात रात्रि में 12 बजकर 56 मिनट के बाद होलिका दहन किया जाएगा। रात्रि 12 बजे के बाद तिथि 18 मार्च हो जाएगी तथा पूर्णिमा तिथि का मान 18 मार्च को दिन में 1 बजकर 1 मिनट पर समाप्त हो जा रही है. होलिका दहन पूर्णिमा तिथि में किया जाता है तथा भद्रा न हो इसका भी विचार होलिका दहन में किया जाता है,इस आधार पर 17 मार्च को रात्रि में भद्रोपरांत रात्रि 12 बजकर 56 मिनट के पश्चात तथा सूर्योदय 6 बजकर 3 मिनट के पूर्व होलिका दहन किया जाएगा तथा पूर्णिमा तिथि समाप्ति के बाद प्रतिपदा में धुरड्डी, होलिकोत्सव,रंगोत्सव किया जाता है । जो इस बार उदयातिथि 19 मार्च दिन शनिवार को पूर्णिमा तिथि 12 बजे तक होने के कारण 19 मार्च को ही होलिकोत्सव मनाया जाएगा और
18 मार्च को पडा रहेगा जहां पर लोकाचार मे पडा नही रहता है वहां पर 18 मार्च को दिन में 12 बजकर 51 मिनट के बाद होलिकोत्सव मना सकते है परन्तु सर्वत्र होली 19 मार्च दिन शनिवार को ही मनाने का शास्त्रीय मत है।
होली पूजा कि विधि व महत्व के बारे में बताते हुए कहा कि जनमानस होलिका की अग्नि में घर की सभी समस्याओं को दहन करने की प्रार्थना करते हैं।शास्त्रों के अनुसार होलिका दहन से पहले स्नान करें.तत्पश्चात होलिका के स्थान पर आसन ग्रहण करें तथा सुनिश्चित करें कि आपका मुख पूर्व या उत्तर की तरफ हो, गाय के गोबर से होलिका और प्रह्लाद की मूर्ति बनाएं. होलिका को माला, रोली,धूप फूल,गुड़, हल्दी, मूंग, बताशा, गुलाल नारियल, पांच या सात प्रकार के अनाज गेहूं और अन्य फसलें अर्पित करें।
इसके अलावा भगवान नरसिंह की पूजा करें और अग्नि के सात फेरे लें,परिक्रमा करते समय अपने परिवार के कल्याण के लिए प्रार्थना करें।
होलिका की अग्नि को अत्यंत पवित्र माना जाता है और अगर आप अग्नि की परिक्रमा करते हुए मनोकामना पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं,तो आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। होलिका की अग्नि में अहंकार और अज्ञान का त्याग कर धर्म के मार्ग पर चलना तथा भक्त प्रहलाद की तरह ही भगवान की पूजा करनी चाहिए।

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