हिंदू धर्म में विवाह के समय स्त्रियां कुछ विशेष पहचान धारण करती हैं, जो उनके विवाहित होने का प्रतीक होती हैं और पति की लंबी उम्र व सुखी जीवन की कामना से जुड़ी रहती हैं। इन्हीं प्रतीकों में एक महत्वपूर्ण स्थान मंगलसूत्र का है।
सिंदूर के बाद अगर किसी प्रतीक को पूरे भारतवर्ष में व्यापक मान्यता मिली है, तो वह मंगलसूत्र ही है। यह न केवल सामाजिक पहचान है, बल्कि धार्मिक और भावनात्मक आस्था से भी जुड़ा हुआ है।
मंगलसूत्र की परंपरा कब शुरू हुई, यह निश्चित तौर पर बताना कठिन है, लेकिन धार्मिक ग्रंथों और परंपराओं में इसे देवी पार्वती से जोड़कर देखा जाता है। माना जाता है कि देवी पार्वती ने इसे विवाह के प्रतीक के रूप में अपनाया था।
इतिहास में भी मंगलसूत्र के उल्लेख मिलते हैं। 300 ईसा पूर्व में लिखे गए तमिल साहित्य में इसका जिक्र मिलता है, जिससे पता चलता है कि प्राचीन काल से ही मंगलसूत्र विवाह संस्कार का एक अभिन्न अंग रहा है।
समय के साथ मंगलसूत्र के डिजाइनों और पहनने के तरीकों में भले ही बदलाव आया हो, लेकिन इसके पीछे छुपा प्रेम, आस्था और समर्पण का भाव आज भी उतना ही मजबूत है।
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