NDA से अलग होते ही गरजे पशुपति पारस, बोले – अब मोदी नहीं हमारे नेता, बिहार चुनाव में बनाएंगे नया गठबंधन
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June 21, 2025
पटना: एनडीए से अलग होने के कुछ ही दिनों बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (रालोजपा) के अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोल दिया है। शनिवार को पटना में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पारस ने न सिर्फ मोदी के नेतृत्व पर सवाल उठाए, बल्कि आगामी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर एक नए राजनीतिक गठबंधन की घोषणा की संभावना भी जताई।
🗣️ "अब नरेंद्र मोदी हमारे नेता नहीं"
पारस ने अपने बयान में कहा –
"अब नरेंद्र मोदी हमारे नेता नहीं हैं। हमने उनके साथ गठबंधन इसलिए किया था कि गरीब, पिछड़े और दलितों को न्याय मिले, लेकिन आज उनके शासन में वही वर्ग सबसे ज्यादा उपेक्षित है।"
उनका यह बयान राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा रहा है। पारस ने आगे कहा कि एनडीए छोड़ने का फैसला पूरी तरह से नीतिगत और सिद्धांत आधारित है, न कि व्यक्तिगत नाराजगी पर।
🏛️ बिहार चुनाव में नया गठबंधन
पारस ने साफ किया कि उनकी पार्टी अब बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में स्वतंत्र या किसी नए मोर्चे के साथ चुनाव लड़ेगी। उन्होंने कहा:
"हम समान विचारधारा वाले दलों से बात कर रहे हैं। हमारा मकसद है कि बिहार में गरीब, दलित और आम आदमी की सरकार बने। आने वाले दिनों में हम एक वैकल्पिक गठबंधन की घोषणा करेंगे।"
सूत्रों की मानें तो पारस की पार्टी लेफ्ट पार्टियों, छोटे क्षेत्रीय दलों और कुछ असंतुष्ट नेताओं से बातचीत कर रही है ताकि एक नया राजनीतिक समीकरण खड़ा किया जा सके।
📉 एनडीए से नाराजगी के कारण
पशुपति पारस की नाराजगी की कई वजहें बताई जा रही हैं:
केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा के बाद उन्हें दोबारा कोई जगह नहीं मिली
बिहार में सीटों के बंटवारे को लेकर उपेक्षा
उनके भतीजे चिराग पासवान को एनडीए में महत्व मिलने से वे खुद को किनारे महसूस कर रहे थे
📌 पारस की राजनीतिक रणनीति पर नजर
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, पारस आगामी चुनाव में दलित वोट बैंक को पुनः संगठित करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। वे पासवान समुदाय की अलग राजनीतिक पहचान बनाना चाहते हैं, जो चिराग पासवान से भिन्न हो।
🔚 निष्कर्ष
एनडीए से अलग होकर पशुपति पारस ने यह संकेत दे दिया है कि बिहार की राजनीति एक बार फिर नए मोड़ पर है। जहां एक ओर एनडीए को झटका लगा है, वहीं विपक्ष को एक और संभावित साझेदार मिल सकता है। अब देखना यह है कि पारस के नेतृत्व में रालोजपा कितनी ताकत के साथ चुनावी मैदान में उतरती है।
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