✍️ संपादक: रोहित कुमार सोनू
सावन की पहली सोमवारी पर जहां शिवभक्ति की लहर उमड़ती थी, इस बार बिहार के हालात कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं। पूरा राज्य भीषण जल संकट से जूझ रहा है, और इसका असर सीधे भगवान शिव की पूजा-अर्चना पर भी पड़ा है।
🔱 शिव को बिना जल चढ़ाकर कर रहे पूजा
परंपरागत रूप से सावन में शिवलिंग पर गंगाजल या साफ जल चढ़ाया जाता है, लेकिन इस बार कई जिलों में लोग बूंद-बूंद पानी को तरस रहे हैं। ऐसे में भक्तों ने सूखे बेलपत्र, फूल और मन से शिव की आराधना करना शुरू कर दिया है। श्रद्धा में कोई कमी नहीं, पर संसाधनों का अभाव साफ झलक रहा है।
📍 पत्रकार का दर्द: जब श्रद्धा और संकट आमने-सामने हो जाएं
बिहार के पत्रकारों ने अपनी रिपोर्टिंग के दौरान इस पीड़ा को बहुत करीब से महसूस किया है।
“मैंने आज खुद एक शिव मंदिर में देखा—जहां पहले 100 लोटा जल चढ़ता था, आज केवल एक लोटा पानी उपलब्ध था। वहां के पुजारी की आंखें नम थीं, लेकिन उनके शब्द थे—‘भोलेनाथ तो भाव के भूखे हैं।’”
ये पंक्तियां सिर्फ एक संवाद नहीं, एक पूरे समाज की मौन चीख हैं।
💧 जल संकट की भयावहता:
सीतामढ़ी, मधुबनी, समस्तीपुर, गया, और दरभंगा जैसे जिलों में हैंडपंप सूखे
लोग नालों और गंदे जलस्रोतों से पीने का पानी भरने को मजबूर
किसान, कांवरिया, आमजन — सब एक जैसी त्रासदी में
🙏 फिर भी अडिग है श्रद्धा
हालात चाहे जैसे भी हों, श्रद्धा शिव के चरणों में झुकी है। लोगों ने कहा — “अगर जल नहीं तो अपने अश्रुओं से अभिषेक करेंगे।” ये ही बिहार की असली ताकत है — भक्ति और सहनशीलता।