✍️ संपादक: रोहित कुमार सोनू
कभी बिहार की पहचान होती थी गरीबी और अंधेरे से — न बिजली थी, न भरपेट भोजन। लेकिन आज हालात बदल गए हैं। अब घरों में रोशनी है, थाली में रोटी है... पर एक नई त्रासदी ने घर कर लिया है — पानी की भयानक कमी।
💧 “अब खाना है, पर पीने को पानी नहीं”
राज्य के हजारों गांवों और कस्बों में यह एक आम सच्चाई बन गई है। बिजली की सप्लाई में सुधार हुआ है, सरकारी योजनाओं से अनाज पहुंच रहा है, लेकिन पानी की एक-एक बूंद के लिए लोग परेशान हैं।
बुजुर्ग बताते हैं:
> “पहले अंधेरा था, भूख थी... लेकिन कुएं और तालाब भरे रहते थे। अब बिजली है, गैस चूल्हा है, लेकिन लोटा भर पानी नहीं।”
📍 बिहार के हालात:
सीतामढ़ी, मधुबनी, दरभंगा, गया, और नवादा जैसे जिलों में सूखे हैंडपंप
सरकार की जल-जीवन मिशन योजना से जुड़ी पाइपलाइनें सूखी पड़ी हैं
महिलाएं सुबह से दोपहर तक एक बाल्टी पानी लाने के लिए कतार में
📸 पत्रकार की आंखों से:
> "मैंने दरभंगा के एक गांव में देखा—बच्चे रोटी तो खा रहे थे, लेकिन पानी के लिए पास के गंदे नाले की तरफ भागते हैं। कई लोगों को दस्त लग चुके हैं, लेकिन कोई विकल्प नहीं है।"
🌿 कभी-कभी तरक्की भी अधूरी होती है
सड़कें बनीं, बिजली पहुंची, राशन मिला... लेकिन क्या जीवन बिना पानी के संभव है? यह सवाल आज हर बिहारवासी के दिल में है। और यह सवाल व्यवस्था से भी जवाब मांग रहा है।
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