बिहार में मतदाता सूची को लेकर इन दिनों काफी हलचल है। भारत निर्वाचन आयोग ने यहां 2003 की मतदाता सूची के आधार पर विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) शुरू किया है। इस निर्णय के पीछे की वजह और इसके प्रभाव को समझना जरूरी है।
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🔹 क्यों 2003 की सूची ही आधार बनी?
भारत निर्वाचन आयोग ने बताया है कि बिहार में 2003 में आखिरी बार सही मायनों में व्यापक गहन पुनरीक्षण किया गया था।
अधिकांश अन्य राज्यों में यह कार्य 2002 और 2004 के बीच किया जा चुका था, इसीलिए अब उन राज्यों में दोबारा SIR की जरूरत नहीं पड़ी।
बिहार में हालांकि हर साल मतदाता सूची का अपडेशन होता रहा है, लेकिन वह केवल सामान्य संक्षिप्त पुनरीक्षण था, गहन (intensive) नहीं।
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🔍 गहन पुनरीक्षण क्या है?
गहन पुनरीक्षण का मतलब है:
प्रत्येक मतदाता से सीधे संपर्क करना।
उनके दस्तावेजों की पुनः जांच।
दोहराव, मृत मतदाता, स्थान परिवर्तन, और फर्जी वोटरों को हटाना।
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🚨 बिहार में आपत्ति क्यों?
बिहार में इस प्रक्रिया को लेकर विपक्ष, खासकर महागठबंधन ने चिंता जताई है।
उन्हें डर है कि पुरानी सूची को आधार बनाकर लाखों लोगों के नाम कट सकते हैं, खासकर जो हाल के वर्षों में जुड़े हैं या जिनके पते बदले हैं।
तेजस्वी यादव जैसे नेता कह रहे हैं कि यह चुनाव से पहले जनादेश को प्रभावित करने की साजिश हो सकती है।
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📌 आयोग का पक्ष
आयोग का कहना है कि 2003 की सूची को आधार बनाने से शुद्ध और विश्वसनीय सूची बनाना संभव होगा।
साथ ही यह भी दावा किया जा रहा है कि कोई नाम बिना वैध कारण के नहीं हटाया जाएगा, और हर मतदाता को फॉर्म भरने का अधिकार और मौका दिया जा रहा है।
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निष्कर्ष:
बिहार में 2003 की सूची को गहन पुनरीक्षण का आधार बनाना तकनीकी रूप से जायज हो सकता है, लेकिन राजनीतिक रूप से यह बड़ा मुद्दा बन गया है। एक ओर आयोग पारदर्शिता की बात कर रहा है, वहीं दूसरी ओर विपक्ष इसे चुनाव में धांधली का रास्ता बता रहा है।