बिहार की संस्कृति और परंपरा पूरे देश में अपनी अलग पहचान रखती है। यहाँ के लोग त्योहारों को सिर्फ धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि पूरे समाज और परिवार के उत्सव के रूप में मनाते हैं। इसी कारण कहा जाता है –
“चौरचन से शुरू और छठ पर खत्म, यही है बिहार का पर्व।”
चौरचन से होती है शुरुआत
भादो महीने की कृष्ण चतुर्थी को मनाया जाने वाला चौरचन मिथिला सहित पूरे बिहार में आस्था का प्रतीक है। इस दिन चंद्रमा की पूजा कर परिवार की सुख-समृद्धि और संतान की लंबी उम्र की कामना की जाती है। पुरी, खीर और पिरूकिया इस पर्व का खास प्रसाद है।
बीच के पर्व – परंपराओं का संगम
चौरचन के बाद बिहार की संस्कृति में एक के बाद एक पर्व आते हैं। दुर्गा पूजा, दशहरा, सामा-चकेबा, दीपावली जैसे उत्सव पूरे समाज को जोड़ते हैं। इन पर्वों में धार्मिक आस्था के साथ-साथ लोकगीत, पारंपरिक पकवान और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी खास महत्व होता है।
छठ से होता है समापन
कार्तिक माह का छठ पर्व बिहार की आत्मा है। यह न सिर्फ राज्य का बल्कि पूरे भारत का सबसे बड़ा लोकपर्व माना जाता है। अस्ताचल और उदयाचल सूर्य को अर्घ्य देकर व्रतधारी महिलाएँ पूरे परिवार और समाज की मंगलकामना करती हैं। यही पर्व बिहार की पहचान बनकर दुनिया भर में प्रसिद्ध है।
बिहार – पर्वों की धरती
बिहार का सालाना कैलेंडर पर्व-त्योहारों से भरा हुआ है। यहाँ हर मौसम और हर महीने का कोई न कोई पर्व जुड़ा है। यही परंपरा इस धरती को सांस्कृतिक रूप से समृद्ध और अनोखा बनाती है।
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✍️ संपादक – रोहित कुमार सोनू