शिवा चन्द्र मिश्रा: संघर्ष, सिद्धांत और सेवा की राजनीति की पहचान

प्रस्तुति – मिथिला हिन्दी न्यूज
राजनीति में नाम कमाने के लिए केवल चुनाव जीतना काफी नहीं होता, वहाँ ज़मीन से जुड़ाव, सच्चाई के लिए अडिग रहना और सिद्धांतों से समझौता न करना ही असली पहचान बनाता है। शिवा चन्द्र मिश्रा का राजनीतिक जीवन इन्हीं मूल्यों की मिसाल है।


राजनीति की विरासत से प्रेरणा

शिवा चन्द्र मिश्रा के पिता पंडित जयदेव मिश्रा पुपरी के उपमुखिया रह चुके हैं। उन्हें शुरू से ही राजनीति का अनुभव घर से मिला। यही पारिवारिक पृष्ठभूमि उन्हें जनसेवा की ओर प्रेरित करती रही।

1980: जनता पार्टी से राजनीतिक सफर की शुरुआत

1980 में मिश्रा जी ने जनता पार्टी से राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। उस समय वे प्रखंड सचिव बने और उनके साथ प्रखंड अध्यक्ष के रूप में रामवृक्ष यादव थे। उसी दौर में उन्होंने विधानसभा और लोकसभा चुनावों के कई अभियानों में कैंपेनर की भूमिका निभाई।

2002: पुपरी झझीहट पैक्स चुनाव में ऐतिहासिक जीत

उत्तर बिहार के सबसे बड़े पैक्स पुपरी झझीहट से उन्होंने 2002 में चुनाव लड़ा। अनेक शक्तिशाली नेता उनके खिलाफ खड़े हो गए, लेकिन जनता का समर्थन उनके साथ था।
उनका नारा आज भी लोगों की जुबान पर है:

> "ना खर्चा था, ना पर्चा था — बाबू भैया का चर्चा था!"



चुनाव जीतने के बाद वे अपने मित्र भुशन सर, जो उस समय बीमार थे, से मिलने गए। यह क्षण उनके लिए आज भी भावुक स्मृति है।


2005: जदयू के प्रखंड अध्यक्ष नियुक्त

2005 में नागेन्द्र सिंह जी के सहयोग से उन्हें जदयू का प्रखंड अध्यक्ष नियुक्त किया गया, जो उनके नेतृत्व क्षमता की स्वीकृति थी।

2007: पैक्स चुनाव में फिर बड़ी जीत

2007 में वे फिर से चुनावी मैदान में उतरे और इस बार भी विरोधियों के गठजोड़ के बावजूद उन्होंने प्रचंड जीत दर्ज की।

2009: मुख्यमंत्री कार्यक्रम में सच्चाई का पक्ष

2009 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एक कार्यक्रम में एक शराब माफिया को सम्मानित किया गया। मिश्रा जी ने इसका मुखर विरोध किया, भले ही वह व्यक्ति ऊँचे पद पर था। इस घटना के बाद कुछ लोगों ने उन्हें जदयू अध्यक्ष पद से हटाने की साज़िश भी रची।

2010: राजद से टिकट का ऑफर ठुकराया

विधानसभा चुनाव से पूर्व, रात में उन्हें सुरसंड से राजद का टिकट ऑफर हुआ। लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया, क्योंकि उस समय वे जदयू के अध्यक्ष थे और अपनी निष्ठा से नहीं डिगे। चुनाव में जयनंदन यादव उम्मीदवार थे।

2011: भारी मतों से जीत और हमला

2011 में एक बार फिर से उन्होंने पैक्स का चुनाव जीता, लेकिन जीत के बाद उन पर विरोधियों ने हमला भी किया। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी।

2013: जिला जदयू महासचिव बने

पांच बार प्रखंड अध्यक्ष रहने के बाद नियम अनुसार वे उस पद पर नहीं रह सकते थे, इसलिए 2013 में उन्हें जिला जदयू महासचिव बनाया गया।

2014: विधान परिषद चुनाव में अकेले संघर्ष

2014 में विधान परिषद चुनाव में देवेश चन्द्र ठाकुर के समर्थन में वे अडिग रहे, जबकि लगभग सभी स्थानीय नेता एक बड़े नेता के इशारे पर उनके विरोध में खड़े थे। कई बार नोकझोंक भी हुई, लेकिन वे नहीं झुके।

2015: जदयू से अलगाव – सिद्धांत की कीमत

जब जदयू-भाजपा गठबंधन टूटा, तो मिश्रा जी ने भी पार्टी से दूरी बना ली। वे इसे राजनीति में उनकी सबसे बड़ी भूल मानते हैं, लेकिन यह भी कहते हैं:

> "मैं सिद्धांत से समझौता नहीं कर सकता था।"

2015: नगर पैक्स में जीत फिर से

सितंबर 2015 में नगर पैक्स का गठन हुआ, उन्होंने चुनाव लड़ा और एक बार फिर बड़े अंतर से जीत दर्ज की, जबकि कई नेता उनके खिलाफ एकजुट हुए थे।


2017 व 2019: सांसद प्रतिनिधि के रूप में सेवा

2017 में सांसद रामकुमार शर्मा ने उन्हें अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया। 2019 में सांसद सुनील कुमार पिंटू जी ने भी उन्हें पुनः सांसद प्रतिनिधि बनाया।


2022: जनकपुर रोड नगर परिषद सभापति चुनाव – हिम्मत की परीक्षा

2022 में उन्होंने जनकपुर रोड नगर परिषद के सभापति पद का चुनाव लड़ा, लेकिन इस चुनाव में पैसे का बड़ा खेल हुआ।

> "पुरानी तरकीबें अपनाकर हराया गया, लेकिन मेरा मनोबल आज भी ऊंचा है।"


फिर से वापसी होगी – और जोड़दार होगी

शिवा चन्द्र मिश्रा की पूरी राजनीति सिद्धांतों, संघर्ष और सेवा की मिसाल रही है। उन्होंने कभी पद के लिए नैतिकता से समझौता नहीं किया। यही वजह है कि जनता आज भी उन्हें "बाबू भैया" कहकर याद करती है।
"फिर से वापसी होगी – और इस बार जोड़दार होगी!"

– आपका,
शिवा चन्द्र मिश्रा

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