रोहित कुमार सोनू
मिथिला की संस्कृति अपनी सरलता, अपनापन और स्वादिष्ट व्यंजनों के लिए जानी जाती है। इनमें सबसे खास स्थान रखता है माछ-भात। यह सिर्फ एक व्यंजन नहीं, बल्कि मिथिला की पहचान और गौरव है।
🐟 माछ-भात का महत्व
- मिथिला के हर त्योहार, पर्व और खास अवसर पर माछ-भात का विशेष स्थान होता है।
- यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है और आज भी हर घर के स्वाद में बसी हुई है।
- माछ-भात को आतिथ्य का प्रतीक माना जाता है। अतिथि सत्कार में इसे विशेष रूप से परोसा जाता है।
🍲 स्वाद और सादगी
- ताजे मछली की खुशबू और गरमा-गरम भात (चावल) का मेल साधारण होते हुए भी असाधारण स्वाद देता है।
- इसमें मसालों की ज्यादा भरमार नहीं होती, बल्कि हल्के मसाले और देसी तरीकों से पकाया गया स्वाद ही इसकी खासियत है।
- यही सादगी माछ-भात को हर दिल अजीज़ बना देती है।
🎭 संस्कृति और जुड़ाव
- मिथिला में कहा भी जाता है – “बिना माछ-भात भोज अधूरा।”
- शादी-ब्याह से लेकर छठ, झिझिया या जितिया व्रत तक, हर मौके पर माछ-भात की उपस्थिति संस्कृति को जीवंत बनाती है।
- यह व्यंजन लोगों को न सिर्फ पेट से, बल्कि दिल और परंपरा से भी जोड़ता है।
👉 यही वजह है कि माछ-भात केवल भोजन नहीं, बल्कि मिथिला की आत्मा और संस्कृति का अटूट हिस्सा है।
संस्कृति और परंपरा से जुड़ी ऐसी खबरों के लिए पढ़ते रहिए मिथिला हिन्दी न्यूज।