बिहार की राजनीति का आकाश हमेशा बदलता रहा है — कभी लालू प्रसाद का दौर, कभी भाजपा की लहर, तो कभी महागठबंधन की राजनीति। लेकिन इन सबके बीच एक नाम लगातार स्थिर और प्रभावशाली बना रहा है — नीतीश कुमार।
साल 2005 में जब नीतीश कुमार ने ‘जंगल राज’ की जंजीरों को तोड़ने का वादा किया था, तब बिहार अपराध, अशिक्षा और बेरोजगारी से कराह रहा था। उनकी छवि एक ‘सुधारक मुख्यमंत्री’ के रूप में बनी, जिन्होंने सड़कों, बिजली और शिक्षा के क्षेत्र में सुधार लाने का दावा किया।
अब, 20 साल बाद, वही नीतीश कुमार एक बार फिर एनडीए के चेहरे के रूप में 2025 के विधानसभा चुनाव में उतर रहे हैं।
विपक्ष की ओर से तेजस्वी यादव को एक युवा और ऊर्जावान नेता के तौर पर पेश किया जा रहा है, जो “नई पीढ़ी के बिहार” का नेतृत्व करने का वादा कर रहे हैं।
लेकिन एनडीए का दावा है कि बिहार की स्थिरता, अनुभव और विकास का चेहरा अब भी नीतीश कुमार ही हैं।
भाजपा और जदयू के नेताओं का कहना है कि “नीतीश कुमार ही बिहार के भविष्य हैं”, क्योंकि उन्होंने राज्य को बुनियादी ढांचे से लेकर सामाजिक न्याय तक कई मोर्चों पर आगे बढ़ाया है।
हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों की राय कुछ अलग है। उनके मुताबिक, नीतीश की छवि भले ही विकास पुरुष की रही हो, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में बार-बार के राजनीतिक गठबंधनों के बदलाव ने उनकी विश्वसनीयता पर असर डाला है। दूसरी ओर, तेजस्वी यादव की लोकप्रियता युवाओं और रोजगार जैसे मुद्दों पर बढ़ी है।
2025 का चुनाव इसलिए भी खास है क्योंकि यह तय करेगा कि बिहार अनुभव पर भरोसा करेगा या बदलाव पर।
क्या नीतीश कुमार तीसरी बार ‘सुशासन बाबू’ के रूप में जनादेश पाएंगे, या युवा जोश तेजस्वी यादव को मौका देगा — यह आने वाला समय बताएगा।
बिहार की राजनीति और चुनावी समीकरण की गहराई से विश्लेषण के लिए पढ़ते रहें — मिथिला हिन्दी न्यूज।