मढ़ौरा चीनी मिल की रसीद तक बिक जाती थी , मिल/फ़ैक्टरी क्यों बंद हुई?

 

मिल बंद होने से तक़रीबन बीस हज़ार गन्ना किसान सीधे सीधे प्रभावित हुए. इन किसानों ने सुनहरे दिन भी देखे हैं. चीनी मिल से मिली रसीद (मज़दूरों को गन्ना देने पर रसीद दी जाती थी, जिससे राशि का भुगतान बाद में होता था) का बाज़ार में बहुत महत्व था. नागेन्द्र राय बताते हैं, "तब तो सुनार तक हम लोगों के दरवाजे पर आ कर कहते थे कि हमसे सामान ख़रीद लो. आज यही लोग एक रुपया की उधार नहीं देते हैं."

रघुनाथ राय बताते हैं, "जिसको भी पैसे की ज़रूरत हुई, वो चीनी मिल से मिली रसीद को बेच देता था. मान लीजिए दस हज़ार की रसीद है, तो उसे नौ हज़ार में बेच दिया. इसलिए चीनी मिल के रहते, पैसे की कभी दिक्कत ही नहीं हुई."

आज खंडहर में तब्दील हो चुके औद्योगिक क्षेत्र में चीनी मिल, डिस्टीलरी और इंजीनियरिंग वर्क्स के कर्मचारियों के लिए बने क्वार्टर में पुराने कर्मचारी रह रहे हैं. इनमें सात नेपाली परिवार भी हैं. 65 साल के भवानी बहादुर 1974 से सिक्युरिटी गार्ड थे. वो बहुत कम उम्र में नेपाल से बिहार आ गए और फिर छपरा की ही एक लड़की चन्द्रावती देवी से शादी कर ली.

वो बताते हैं, "1997 में जब चीनी मिल बंद हुई तो इसी आस में साल 2000 तक बिना वेतन के ड्यूटी करते रहे कि मिल दोबारा चालू हो जाएगी. प्रोविडेन्ट फंड का पैसा बैठकर खाते रहे, लेकिन जब मिल नहीं खुली तो बाहर चले गए मज़दूरी करने. अब शरीर साथ नहीं देता तो घर वापस लौट आए."

मिल/फ़ैक्टरी क्यों बंद हुई?

इस बात के जवाब टुकड़ों-टुकड़ों में ही हमारे पास आते हैं. मॉर्टन फ़ैक्टरी, के के बिड़ला समूह की थी, जिसे बाद में पांच स्थानीय लोगों को नीलाम कर दिया गया. मॉर्टन की फैक्ट्री का पूरा ढांचा कबाड़ी में बिक गया तो सिर्फ यादगार के तौर पर मॉर्टन का बोर्ड लगा दफ़्तर बचा है.

इसकी देखभाल कर रहे गार्ड कामाख्या सिंह बताते हैं, "मुख्य समस्या मज़दूरी की थी. साल 2000 में जब मिल बंद हुई तो सबसे बड़े बाबू को पांच हज़ार मिलते थे और मज़दूर को महज पच्चीस सौ रुपये. इसी के चलते मैनेजमेंट और मज़दूरों में तनातनी थी. इस तनातनी मे फ़ैक्टरी बिकी और कर्मचारियों को वीआरएस दे दिया गया."

वहीं चीनी मिल के बंद होने की तीन मुख्य वजह राम बाबू सिंह बताते हैं, "पहला तो ये कि ब्रिटिश इंडिया कॉरपोरेशन (बीआईसी) की सारी मिलों को टेक्सटाइल मिनिस्ट्री ने ले लिया. टेक्सटाइल का चीनी से दूर दूर तक कोई नाता नहीं. 

जिसके चलते राजनीतिक हस्तक्षेप बढ़ा. दूसरा ये कि प्रदूषण विभाग ने तकनीकी वजहों से डिस्टीलरी फ़ैक्ट्री बंद कर दी जिससे चीनी मिल को आमदनी देने वाली फ़ैक्ट्री बंद हो गई. तीसरा ये कि प्रतिस्पर्धा के दौर में मिल की गन्ना पेरने की कैपासिटी को समयानुसार बढ़ नहीं पाई."

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