संवाद
छठ महापर्व का आज दूसरा दिन खरना पूजा के साथ आरंभ हो गया है। इस पवित्र अवसर पर व्रती सूर्य देव और छठी मैया की आराधना करते हुए 36 घंटे के निर्जला व्रत की शुरुआत करते हैं। इस दिन शारीरिक एवं मानसिक शुद्धि का विशेष महत्व होता है।
खरना का धार्मिक महत्व
खरना को छठ पर्व का सबसे पवित्र चरण माना जाता है। इसे आत्मिक शुद्धि और तपस्या का प्रतीक समझा जाता है। इस दिन से व्रतियों का कठोर निर्जला उपवास प्रारंभ होता है, जो अगले दिन सूर्य अर्घ्य के बाद ही पूर्ण होता है।
पूजन विधि
- सुबह सूर्योदय से पहले स्नान कर आत्म-शुद्धि का संकल्प लिया जाता है।
- दिनभर व्रती निर्जला व्रत रखते हुए सूर्य देव और छठी मैया का ध्यान करते हैं।
- शाम के समय पूजा स्थल की सफाई कर पवित्र वातावरण तैयार किया जाता है।
- सूर्यास्त के बाद गुड़ की खीर (रसीयाव), आटे की रोटी (रोटी अथवा ठेकुआ), केला और अन्य प्रसाद बनाया जाता है।
- सूर्य देव और छठी मैया को विधिपूर्वक पूजा कर भोग लगाया जाता है।
- प्रसाद ग्रहण कर ही निर्जला उपवास प्रारंभ होता है।
आध्यात्मिक महत्व
खरना केवल उपवास नहीं, बल्कि मन, विचार और कर्म की शुद्धि का संकल्प है। व्रती इस दिन अपने भीतर की नकारात्मकता को त्यागने और सकारात्मक ऊर्जा के संचार का प्रयास करते हैं। ऐसा माना जाता है कि खरना के व्रत से मनुष्य को आत्मबल, धैर्य और दिव्य ऊर्जा की प्राप्ति होती है।
कल होगा संध्या अर्घ्य
खरना के अगले दिन व्रती परिवारजन एवं समुदाय के साथ घाटों पर जाकर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित करेंगे। यही छठ पूजा का सबसे भावनात्मक और आध्यात्मिक क्षण माना जाता है।
छठ महापर्व की पावन गूंज के बीच खरना का यह दिन पूरे परिवेश में आध्यात्मिक शांति और श्रद्धा का वातावरण बना देता है।
छठी मैया सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करें।
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