संवाद
छठ पूजा से पहले बलिया का मुख्य बाजार इन दिनों रोशनी, रंग और श्रद्धा से जगमगाता दिख रहा है। सड़कों पर लगी पूजन सामग्री की दुकानों पर महिलाओं से लेकर बच्चों और बुजुर्गों तक की चहल-पहल ने पूरे बाजार के माहौल को आस्था से भर दिया है। कहीं सूथनी, कहीं टोकरी, कहीं केले के घौंघा और कहीं गन्ने की मीनार—हर जगह श्रद्धालुओं की उमंग साफ झलक रही है।
इसी भीड़भाड़ वाले माहौल में एक ऐसा दृश्य सामने आया जिसने लोगों को रुककर सोचने पर मजबूर कर दिया। किन्नर समुदाय के सदस्य भी हाथों में पूजा की टोकरी, सुपली और प्रसाद की सामग्री लिए श्रद्धा के साथ खरीदारी करते नजर आए। जैसे ही यह दृश्य सामने आया, बाजार में मौजूद लोगों की नजरें कुछ पल के लिए ठहर गईं—लेकिन ठहराव के बाद उनके चेहरे पर सम्मान की एक नई भावना उभरती दिखाई दी।
यह दृश्य सिर्फ बाजार के चहल-पहल का हिस्सा नहीं था, बल्कि समाज में समावेश और समानता की उस भावना का प्रतीक था, जो अक्सर अनदेखी रह जाती है। छठ महापर्व भेदभाव से परे सबको एक ही भावनात्मक धारा में जोड़ता है। सूर्योपासना और छठी मैया की आराधना में किन्नर समुदाय की यह आस्था साबित करती है कि धर्म और संस्कृति के त्योहार किसी एक वर्ग तक सीमित नहीं होते।
आस्था ने मिटाई दूरियाँ
किन्नर समुदाय समाज में अक्सर उपेक्षा का सामना करता है, लेकिन छठ जैसे पर्व के दौरान उनकी भागीदारी इस बात का मजबूत संकेत है कि आस्था के आगे सभी बराबर हैं। छठ के परंपरागत गीतों की धुन, पूजा सामग्री की सुगंध और बाजार की रोशनी में जब किन्नर समुदाय के सदस्य भी शामिल हुए, तो यह दृश्य एक सामाजिक एकता का अद्भुत उदाहरण बन गया।
समाज के लिए एक सकारात्मक संदेश
यह दृश्य न केवल उनकी धार्मिक भावनाओं का प्रदर्शन था, बल्कि उन दीवारों को तोड़ने की प्रक्रिया भी थी जो समाज ने समय के साथ खुद खड़ी की थीं। कई श्रद्धालुओं ने उन्हें सम्मान के साथ देखा, कुछ ने उनसे बातचीत की, और कुछ ने यह कहते हुए खुशी जताई कि “छठ मैया सबकी सुनती हैं, सबकी मइया हैं।”
बलिया का यह बाजार इस साल सिर्फ रोशनी से नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता की चमक से भी जगमगा उठा है।
मिथिला हिन्दी न्यूज