संवाद
समस्तीपुर जिले के सरायरंजन प्रखंड स्थित बथुआ बुजुर्ग गांव में छठ पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि हिंदू-मुस्लिम एकता और सामाजिक सद्भाव का प्रतीक बन चुकी है। यहां हिंदू परिवारों के साथ-साथ कई मुस्लिम परिवार भी पूरे रीति-रिवाज और श्रद्धा के साथ छठ व्रत करते हैं। एक ही घाट पर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते हुए इन परिवारों की एकजुटता पूरे समाज को धार्मिक सौहार्द का संदेश देती है।🕌 मुस्लिम परिवार निभाते हैं छठ की परंपराएं
करीब 8,000 की आबादी वाले इस गांव में लगभग 2,000 मुस्लिम रहते हैं। इनमें से 15 मुस्लिम परिवार छठ व्रत करते हैं। ये परिवार न केवल खरना से लेकर अर्घ्य देने तक की परंपराएं निभाते हैं, बल्कि व्रत की पवित्रता और अनुशासन का पूरी निष्ठा से पालन करते हैं।
📜 सौ साल पुरानी परंपरा
गांव के बुजुर्गों के अनुसार, लगभग 100 वर्ष पूर्व मुस्लिम समुदाय के सिर्फ 2-3 परिवारों ने मनौती पूरी होने पर छठ व्रत शुरू किया था। धीरे-धीरे आस्था बढ़ती गई और आज यह परंपरा गांव के कई मुस्लिम परिवारों में समर्पण के साथ निभाई जा रही है।
🤝 पेशे ने बढ़ाई नजदीकी, आस्था ने जोड़ा दिल
बथुआ बुजुर्ग स्थित डीहवारणी पोखर पर बना छठ घाट इस सांप्रदायिक एकता का साक्षी है। यहां हिंदू समुदाय के ततमा जाति और मुस्लिम समुदाय के धुनिया-बुनकर परिवार एक साथ सूर्य अर्घ्य देते हैं। दोनों समुदायों का पेशा समान होने के कारण वर्षों से आपसी मेलजोल रहा है, जिसने छठ को साझा आस्था का रूप दे दिया।
🌅 मन्नत पूरी होने पर बढ़ी आस्था
ग्रामीण बताते हैं कि कई मुस्लिम परिवारों की मन्नतें छठ मइया की कृपा से पूरी हुईं। इसके बाद उन्होंने इस व्रत को अपनी भावनाओं से जोड़ लिया और आज हर वर्ष समर्पणपूर्वक इसका पालन करते हैं। उनका कहना है— "छठ मइया सबकी सुनती हैं, वह धर्म नहीं, दिल देखती हैं।"
🌸 उदाहरण पूरे समाज के लिए प्रेरणा
आज जब समाज में धार्मिक विभाजन की बातें होती हैं, ऐसे में बथुआ बुजुर्ग जैसे गांव एक मिसाल बनकर सामने आते हैं। यहां की गंगा-जमुनी तहज़ीब यह संदेश देती है कि त्यौहार केवल धर्म नहीं, बल्कि सामाजिक मेल-मिलाप और मानवता का प्रतीक होते हैं।
🙏 यह छठ न सिर्फ सूर्य उपासना, बल्कि भाईचारे की अद्भुत मिसाल है।
ऐसी परंपराएं हमारी संस्कृति को और मजबूत बनाती हैं।
– मिथिला हिन्दी न्यूज