संवाद
हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। यह दिन धन, आरोग्य और समृद्धि से जुड़ा माना जाता है। इस दिन जहां एक ओर लोग भगवान धनवंतरि और मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं, वहीं दूसरी ओर मृत्यु के देवता यमराज के नाम से दीप जलाने की भी परंपरा होती है। इस परंपरा को ‘यम दीपदान’ कहा जाता है।
🔱 क्या है यम दीपदान की परंपरा
धार्मिक मान्यता के अनुसार, धनतेरस की रात यमराज के नाम पर दीपक जलाने से अकाल मृत्यु का भय दूर हो जाता है और घर-परिवार पर कोई अनहोनी नहीं आती। यह दीपक यमराज को समर्पित होता है, जो व्यक्ति के जीवन की रक्षा करता है और दीर्घायु प्रदान करता है।
🪔 यम दीप जलाने की विधि
- धनतेरस की संध्या को सूर्यास्त के बाद शुभ मुहूर्त में दीप जलाएं।
- घर के मुख्य द्वार के बाहर दक्षिण दिशा में एक चौमुखा दीया रखें।
- दीप जलाने के लिए सरसों के तेल का प्रयोग करें।
- इस दीप में चार बातियाँ लगाई जाती हैं, जो चारों दिशाओं की सुरक्षा का प्रतीक हैं।
- दीप जलाते समय मन ही मन यमराज से परिवार की दीर्घायु और सुरक्षा की कामना करें।
- इस दीप को पूरी रात जलने दें, इसे बीच में बुझाना अशुभ माना जाता है।
🌙 धार्मिक कथा और मान्यता
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार राजा हेमराज के पुत्र की कुंडली में अकाल मृत्यु का योग था। धनतेरस की रात उसकी पत्नी ने घर के बाहर दीपों की पंक्ति सजाई और सोने-चांदी के गहनों का ढेर लगाकर द्वार बंद कर लिया। जब यमराज उसके प्राण लेने आए, तो दीपों की रोशनी और धन के चमक से मोहित होकर बिना कुछ बोले लौट गए। तब से ही इस दिन यम के लिए दीपदान करने की परंपरा चली आ रही है।
✨ इसका धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
यम दीपदान केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन की नश्वरता का स्मरण और आत्मा की सुरक्षा का प्रतीक है। यह दीप हमें यह संदेश देता है कि जीवन में प्रकाश, आस्था और श्रद्धा बनी रहे, तो मृत्यु का भय भी मिट जाता है।
धनतेरस पर यमराज के नाम का दीप जलाना इसलिए भी शुभ माना जाता है क्योंकि यह धन, स्वास्थ्य और दीर्घायु तीनों का वरदान प्रदान करता है।
🌼 इस धनतेरस आप भी यम दीपदान करें और अपने परिवार की सुरक्षा और खुशहाली की प्रार्थना करें।
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