आखिर क्यों शहनवाज़ हुसैन जैसे अनुभवी नेता की अनदेखी कर रही है भाजपा?

रोहित कुमार सोनू 

पटना: कभी बिहार में भाजपा का सबसे चर्चित और विश्वसनीय चेहरा माने जाने वाले सैयद शहनवाज़ हुसैन की लगातार हो रही राजनीतिक उपेक्षा अब चर्चा का बड़ा विषय बन गई है। एक समय था जब उन्हें पार्टी का “सेक्युलर चेहरा” और समावेशी राजनीति की पहचान कहा जाता था, लेकिन बीते कुछ सालों में वे न तो किसी बड़ी भूमिका में नजर आए हैं और न ही हाल में जारी स्टार प्रचारकों की सूची में उनका नाम शामिल किया गया है।

शहनवाज़ हुसैन ने एक निजी टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में अपने दिल की बात खुलकर कही। उन्होंने कहा —

“मैं जितना हिंदुओं का नेता हूं, उतना ही मुसलमानों का भी हूं। मैंने हमेशा सबको साथ लेकर राजनीति की है।”

उनका यह बयान इस बात की झलक देता है कि वे अपनी राजनीतिक हाशिए पर लाए जाने से आहत हैं।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि भाजपा के भीतर अब सामाजिक समीकरणों और रणनीतिक प्राथमिकताओं में बड़ा बदलाव आया है, जिसमें शहनवाज़ हुसैन जैसे समावेशी छवि वाले नेताओं के लिए जगह सीमित होती जा रही है।

कभी किशनगंज, भागलपुर और पटना जैसे इलाकों में भाजपा के मुस्लिम वोटों को प्रभावित करने वाले शहनवाज़ हुसैन आज संगठन में किनारे पर धकेले गए दिखते हैं।
पार्टी ने न तो उन्हें इस बार विधानसभा या लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाया और न ही उन्हें स्टार प्रचारक सूची में स्थान दिया।

विशेषज्ञों का मानना है कि भाजपा इस बार बिहार में अपने कोर वोट बैंक को मजबूत करने की रणनीति पर चल रही है, और इसी कारण ऐसे चेहरे जिन्हें “सेक्युलर प्रतीक” माना जाता है, फिलहाल पीछे कर दिए गए हैं।

हालांकि, पार्टी के अंदरूनी सूत्र मानते हैं कि शहनवाज़ हुसैन की छवि और अनुभव को पूरी तरह नज़रअंदाज़ करना भाजपा के लिए राजनीतिक रूप से नुकसानदायक साबित हो सकता है, खासकर तब जब बिहार जैसे राज्य में सम्प्रदायिक संतुलन और संदेश की राजनीति अहम भूमिका निभाती है।

अब देखना दिलचस्प होगा कि शहनवाज़ हुसैन आगे क्या रुख अपनाते हैं —
क्या वे पार्टी लाइन पर रहकर काम करते रहेंगे या अपनी राजनीतिक सक्रियता का नया रास्ता चुनेंगे।

बिहार की राजनीति के हर पहलू और अंदरूनी हलचल के लिए पढ़ते रहिए मिथिला हिन्दी न्यूज.

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