संवाद
छठ पूजा सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि मिथिला की आत्मा में बसी जीवन-शैली है। यह वह पर्व है जहाँ प्रकृति, परंपरा और विश्वास एक साथ मिलकर भावनाओं की ऐसी गंगा प्रवाहित करते हैं, जिसमें पूरा समाज डूबकर एकात्म हो जाता है।
🌞 सूर्य उपासना की सबसे प्राचीन परंपराओं में अग्रणी
छठ पूजा को भारतीय संस्कृति की सबसे प्राचीन सूर्य उपासना माना जाता है। मिथिला में यह पर्व विशेष महत्व रखता है क्योंकि यहां इसे सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सामाजिक एकता और पारिवारिक मजबूती का प्रतीक माना जाता है।
🙏 कांवरिया पथ से घाट तक भावनाओं का सफ़र
मिथिला के गाँवों और कस्बों में छठ शुरू होते ही एक विशेष माहौल बन जाता है। व्रती "नहाय-खाय" से शुरुआत करते हैं, इसके बाद "खरना" का प्रशाद—गुड़ की खीर और रोटी—पूरा परिवार मिलकर ग्रहण करता है। इसके बाद 36 घंटे का निराहार व्रत शुरू होता है।
🌊 घनों से भरे घाट – श्रद्धा के समुद्र
दरभंगा की बूढ़ी गंडक, सीतामढ़ी की लखनदेई, मधुबनी की कमला और सुपौल की कोसी—सभी नदियों के घाट छठ के दौरान आस्था के कुंभ में बदल जाते हैं। महिलाएं पारंपरिक मैथिल पोशाक पहने, "कोसिआर" में फल, ठेकुआ और नारियल सजाकर सूर्यदेव को अर्घ्य देती हैं।
🎶 लोकगीतों में बोलती मिथिला की विरासत
मिथिला के छठ गीत इस पर्व की जान माने जाते हैं।
"कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए..."
या
"हे दिनानाथ! होछ तोंहें आरो एक बेर..."
ये गीत भावनाओं को नई गति देते हैं, और विश्वास को जीवन में स्थिरता प्रदान करते हैं।
👨👩👧👦 सिर्फ पर्व नहीं, सामाजिक सामंजस्य का उत्सव
छठ पूजा में जाति, धर्म और वर्ग की दीवारें टूट जाती हैं। पूरा गाँव एक परिवार बनकर तैयारियों में शामिल होता है—कोई घाट सजाता है, कोई प्रसाद बनाता है, तो कोई दीप सजाता है।
🎇 छठ और मिथिला की पहचान
जैसे तीज उत्तर भारत की पहचान है, वैसे ही छठ पूजा मिथिला की सांस्कृतिक धरोहर है। यह सिर्फ सूर्य की आराधना नहीं, बल्कि जीवन में संयम, अनुशासन और शुचिता का संदेश देती है।
छठ पूजा मिथिला के हृदय की धड़कन है – जहाँ आस्था दीपक बनकर हर दिल में जलती है।
छठ पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ!
मिथिला हिन्दी न्यूज