चुनावी साल में रेलवे की ‘डिजिटल चमक’, लेकिन यात्रियों को जमीनी बदलाव की तलाश

रोहित कुमार सोनू /अनूप नारायण सिंह 

बिहार में इस वर्ष विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में रेलवे सहित कई सरकारी विभागों से जनता को अपेक्षा थी कि यात्री सुविधाओं में ठोस बदलाव देखने को मिलेगा। विशेष रूप से बिहार के लोगों की नज़र रेलवे पर इसलिए भी रहती है क्योंकि बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर और छात्र रोजाना रेल यात्राएं करते हैं।

रेलवे ने हाल ही में अपनी छवि सुधारने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया। यूट्यूब और अन्य प्लेटफॉर्म्स पर कई प्रचार वीडियो जारी किए गए जिनमें यात्रियों को नाश्ते का डब्बा, पानी की बोतल, साफ-सुथरे कोच और बैठने की सुधरी व्यवस्था के दावे पेश किए गए। इन वीडियो में यह जताने की कोशिश की गई कि रेलवे अब पहले से काफी बेहतर हो चुका है।

लेकिन जब यात्री ग्राउंड जीरो यानी स्टेशन और ट्रेन के डिब्बों तक पहुंचे, तो वास्तविकता कुछ और ही निकली। अधिकांश यात्रियों को न तो नाश्ते का कोई डब्बा मिला, न ही पानी की उपलब्धता में कोई विशेष सुधार दिखा। कई स्टेशनों पर बैठने की पर्याप्त व्यवस्था आज भी नदारद है। कई लोगों ने कहा कि उन्हें अक्सर फर्श पर बैठकर ही इंतजार करना पड़ता है।

पटना, दरभंगा, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर और भागलपुर जैसे प्रमुख स्टेशनों पर भी यात्रियों ने शिकायत की कि सोशल मीडिया पर दिखाए जा रहे ‘सुविधा युक्त रेलवे’ की तस्वीर जमीन पर नजर नहीं आती। एक यात्री ने कहा, “वीडियो में तो सब चमकता दिखता है, लेकिन असली सफर में वही पुरानी परेशानी — भीड़, पानी की कमी और सीट के लिए धक्कामुक्की।”

विशेषज्ञों का मानना है कि चुनावी वर्ष में रेलवे अपनी छवि को डिजिटल माध्यमों पर मजबूत कर रहा है, लेकिन जमीनी व्यवस्था में वास्तविक परिवर्तन तभी संभव होगा जब बुनियादी ढांचे पर ईमानदारी से काम किया जाए।

अब देखना यह होगा कि चुनावी माहौल में रेलवे यात्रियों की शिकायतों को केवल वीडियो की चमक से दबाने की कोशिश करता है या फिर वास्तव में राहत देने के लिए कारगर कदम उठाता है।


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